SSP प्रभाकर चौधरी ने जारी किया नया आदेश- मुकदमें में रायशुमारी के बिना विवेचक नहीं ले सकेगा कोई निर्णय,

मेरठ एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने नया आदेश जारी किया है। अब विशेषज्ञों की रायशुमारी के बिना विवेचक मुकदमे में नहीं ले सकेगा कोई निर्णय धारा घटाने बढ़ाने और आरोपित का नाम निकालने या जोड़ने को साक्ष्य देने होंगे।

 

 मेरठ। मुकदमों की विवेचना से भ्रष्टाचार का जंग हटाने के लिए एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने नया आदेश जारी किया है। अब मुकदमों में विवेचक अभियोजन पक्ष की स्वीकृति के बिना कोई भी निर्णय नहीं ले सकेगा। यानी मुकदमे में एफआइआर के अलावा कोई भी फेरबदल करना हो तो अभियोजन पक्ष (पुलिस विशेषज्ञों) से रायशुमारी करनी होगी। उसके बाद ही आरोप पत्र या फाइनल रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाएगी। ताकि आरोपित या पीड़ित पक्ष पुलिस की कार्रवाई पर अंगुली न उठा सके। पुलिस महकमे में मुकदमों की विवेचना में बड़ा खेल होता है। मामूली वसूली के लिए विवेचक इंसाफ का गला दबा देते हैं। एसएसपी के नए आदेश के अनुसार अब विवेचक को मुकदमें में कोई भी तथ्य बदलने के लिए उसके साक्ष्य जुटाने होंगे। यदि अभियोजन पक्ष की जांच में तथ्य सही हैं, तभी मुकदमे में फेरबदल की अनुमति दी जाएगी।

इन विवेचनाओं में मिला ‘खेल’

वीवो कंपनी के एक आइएमईआइ नंबर पर साढ़े 13 हजार मोबाइल संचालित हो रहे थे। तब भी फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई। शहर में आनंद अस्पताल के मालिक हरिओम आनंद आत्महत्या कांड में भी पुलिस की फाइनल रिपोर्ट पर सवाल खड़े हुए तो विवेचना दोबारा दूसरे जनपद से शुरू कराई गई।

मोदीपुरम फ्लाईओवर पर दारोगा के ऊपर फायरिंग की फर्जी वारदात पर चार्जशीट लगाकर कोर्ट में पेश की गई। उस मुकदमे में भी दोबारा से हापुड़ पुलिस को विवेचना करने के आदेश दिए गए। जनपद की इन बड़ी विवेचनाओं में गड़बड़ी मिलने के बाद ही अब यह कदम उठाया गया है।

एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने बताया: तथ्य और साक्ष्य के आधार पर ही मुकदमे में आरोप पत्र या फाइनल रिपोर्ट लगे। इसके लिए अभियोजन पक्ष की अनुमति लेनी अनिवार्य कर दी है, जबकि पहले संगीन मामलों में ही अनुमति ली जाती थी। अब पुलिस की कार्रवाई पर सवाल नहीं उठेंगे।

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