रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष का असर एलआईसी के मेगा इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) पर भी पड़ सकता है। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार इसे अगले वित्तीय वर्ष तक के लिए टाल सकती है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। बाजार विशेषज्ञों ने रविवार को कहा कि सरकार एलआईसी के मेगा इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) को अगले वित्तीय वर्ष के लिए टाल सकती है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध ने सार्वजनिक निर्गम में फंड मैनेजरों की रुचि को कम कर दिया है। सरकार इस महीने जीवन बीमा निगम (एलआईसी) में 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रही थी, जिससे सरकारी खजाने को 60,000 करोड़ रुपये से अधिक मिल सकते थे। इस आईपीओ से चालू वित्त वर्ष में 78,000 करोड़ रुपये के विनिवेश लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलती।
आशिका ग्रुप के रिटेल इक्विटी रिसर्च के प्रमुख अरिजीत मालाकार ने कहा, “रूस और यूक्रेन के बीच मौजूदा भू-राजनीतिक मुद्दा वैश्विक इक्विटी बाजारों को चोट पहुंचा रहा है। भारतीय बाजारों ने भी इसपर नकारात्मक प्रतिक्रिया दी है और अब तक के उच्चतम स्तर से लगभग 11 प्रतिशत की गिरावट आई है।” उन्होंने कहा, “मौजूदा बाजार की अस्थिरता एलआईसी आईपीओ के लिए अनुकूल नहीं है और सरकार इस मुद्दे को अगले वित्त वर्ष के लिए टाल सकती है।”
आम तौर पर अत्यधिक उतार-चढ़ाव वाले बाजार में निवेशक सुरक्षित रूप से निवेश करते हैं और नए निवेश करने से बचते हैं। ऐसे में इक्विटी बाजार को स्थिर होने की जरूरत है, ताकि निवेशकों को एलआईसी आईपीओ में निवेश करने का विश्वास मिल सके। रिसर्च-इक्विटीमास्टर की सह-प्रमुख तनुश्री बनर्जी का भी कुछ ऐसा ही कहना है। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से यूक्रेन-रूस युद्ध के मद्देनजर बाजार के कमजोर सेंटीमेंट्स आईपीओ के लिए निराशाजनक हैं। ऐसे में आईपीओ के स्थगित होने की संभावना है, लेकिन सरकार की विनिवेश योजनाओं के लिए यह मुद्दा महत्वपूर्ण बना हुआ है।
एलआईसी का आईपीओ विशुद्ध रूप से भारत सरकार द्वारा एक ऑफर-फॉर-सेल (ओएफएस) है। एलआईसी में सरकार की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी या 632.49 करोड़ से अधिक शेयर हैं। शेयरों की फेस वैल्यू 10 रुपये प्रति शेयर है। एलआईसी पब्लिक इश्यू भारतीय शेयर बाजार के इतिहास में सबसे बड़ा आईपीओ होगा। एक बार सूचीबद्ध होने के बाद, एलआईसी का बाजार मूल्यांकन आरआईएल और टीसीएस जैसी शीर्ष कंपनियों के बराबर होगा।