जो लोग डिजिटल सहूलियत चाहते हैं वो वालेट और यूपीआइ का इस्तेमाल कर सकते हैं। वो लोग जो ई-रुपी का इस्तेमाल नहीं कर सकते या जो किसी भी वजह से नहीं करेंगे वो पेपर कैश के साथ ही बने रहेंगे।
नई दिल्ली, आरबीआई ने ई-रुपी का पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर दिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इसको लेकर ज्यादा उत्साह नहीं है। कोई भी नया आइडिया स्वीकार किए जाने में वक्त लेता है। अब ई-रुपी के साथ क्या होगा, ये तो वक्त बताएगा। पर हम एक नपा-तुला अंदाजा तो लगा ही सकते हैं। ध्यान दें, यहां डिजिटल करेंसी जैसा जाना-पहचाना शब्द इस्तेमाल नहीं हो रहा है। आरबीआई ने पहले ही साफ कर दिया है कि ई-रुपी मौजूदा करेंसी ही है जिसे नए डिजिटल फार्म में जारी किया जा रहा है।
अगर आप कैश इस्तेमाल की वजहों को अच्छी तरह से समझ लेते हैं तो आपको भारत में डिजिटल करेंसी का भविष्य समझ आ जाएगा। हालांकि, हम सभी इस विषय को समझते हैं, पर फिर भी इस पर बात करना अच्छा रहेगा। ऐसे लेनदेन जो कुछ हजार रुपयों के हों, उनमें कैश का इस्तेमाल आसान होता है। इसमें आपको चेकबुक या स्मार्टफोन जैसी किसी तैयारी की जरूरत नहीं होती। हमारी जनसंख्या के एक खास हिस्से के लिए, ये बातें काफी अहम हैं और इस नजरिए से देखें तो ये मसला यहीं तय हो जाता है।
क्या है डिजिटल करेंसी का भविष्यअसल में कुछ लोगों की आमदनी उस तरह की है, जो कहीं दर्ज नहीं होती और ये दिखाई भी तभी जाती है जब उसे वैध करने की मजबूरी हो। किसी भी बड़े लेनदेन के लिए कैश का इस्तेमाल मुश्किल होता जा रहा है। मगर लोग ऐसा करना जारी रखे हुए हैं और ऐसा करते रहने के उनके क्या कारण हैं, हम सब अच्छी तरह से जानते हैं। यही वजह है कि कैश का इस्तेमाल लेनदेन के अलावा पैसों को अपने पास रखने के लिए भी किया जाता है, और यहां भी यही कहानी दोहराई जा रही है। आने वाले वक्त में पेपर कैश का इस्तेमाल ई-रुपी में बदलता जाएगा। छोटे लेनदेन के लिए जो लोग तकनीकी तौर पर सक्षम नहीं हैं, बुजुर्ग हैं, या जो स्मार्टफोन नहीं रख सकते, या फिर डिजिटल वालेट और यूपीआइ के इस्तेमाल के लिए पढ़े लिखे नहीं हैं, वो लोग ई-रुपी का इस्तेमाल भी ठीक इन्हीं कारणों के लिए नहीं करेंगे।
आम लोगों को कितनी स्वीकार्य होगी डिजिटल करेंसीजिन लोगों को करेंसी नोट चाहिए यानी ऐसे नोट जिन्हें वो हाथों से छूकर महसूस कर सकते हैं और गिन सकते हैं। डिजिटल वालेट, यूपीआइ और ई-रुपी, उनके लिए ठीक वैसा ही है। उन लोगों के लिए जिन्हें गुमनाम और गुप्त रहने की जरूरत है, उनकी तो बात करना ही फिजूल है। आरबीआइ ने कहा है कि ई-रुपी में पहचान छुपी रहेगी, मगर हम इस विषय पर गंभीर ही रहें तो बेहतर है। कोई भी शख्स जो बड़ी मात्रा में पेपर कैश में डील करता है अगर उससे आप आरबीआई के ई-रुपी के लेनदेन में गुमनाम बने रहने के वायदे के बारे में बात करेंगे, तो वो हंसेगा ही।कई जगहों पर ई-रुपी के यूपीआइ से बेहतर होने की बातें सुनने में आई हैं। मिसाल के तौर पर, ई-रुपी में बैंक को बीच में लाने की कोई जरूरत नहीं होती। इसको क्रिप्टोकरेंसी के इस्तेमाल से समझा जा सकता है।
न करें क्रिप्टो समझने की गलतीएक क्रिप्टो के इस्तेमाल का एकमात्र और मूल फायदा ही था कि इसे सीधे इस्तेमाल किया जा सकता था। आखिर आप करेंसी को सीधे नेटवर्क पर एक क्रिप्टो वालेट से दूसरे में ट्रांसफर कर सकते हैं। इलेक्ट्रानिक कैश को सुरक्षित तरीके से बिना किसी इंटरमीडिएटरी के स्टोर करना और ट्रांसफर करना दुरूह और महंगा है, और इसीलिए इस बात को समझना मुश्किल है कि इसे ई-रुपी के इस्तेमाल में दोहराया जा रहा है। इस समय, ई-रुपी एक ऐसे समाधान की तरह लग रहा है जो समस्या की तलाश में है। पर हां, अभी ये शुरुआती दिन हैं। हो सकता है ई-रुपी का कोई दिलचस्प इस्तेमाल जल्द ही सामने आ जाए।