कोरोना के डर से तीन महीने तक हवाईअड्डे पर ही रुका ये भारतीय, अमेरिकी अदालत ने अनाधिकृत प्रवेश को लेकर किया बरी,

अभियोजन पक्ष ने अधिकारियों को बताया कि कोविड-19 महामारी से आदित्य काफी घबरा गए थे जिसकी वजह से वह भारत की फ्लाइट पकड़ने के बजाय हवाईअड्डे के एक टर्मिनल पर ही रुक गए। लोग उन्हें खाना दे दिया करते थे।

 

न्यूयार्क, प्रेट्र। कोरोना (Covid-19) के डर से भारत लौटने के बजाय शिकागो के ओहारे अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर तीन महीने तक रहने वाले एक भारतीय को अमेरिका की एक अदालत ने अनाधिकृत प्रवेश के आरोप से बरी कर दिया। इस घटना ने वर्ष 2004 में आई टाम हैंक्स की मूवी ‘द टर्मिनल’ की याद ताजा कर दी थी।

शिकागो ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, कुक काउंटी के जज एड्रिन डेविस ने आदित्य सिंह (37) को मंगलवार को आरोप से बरी कर दिया। हालांकि, उन्हें शुक्रवार को फिर अदालत में पेश होना पड़ेगा, क्योंकि उन पर इलेक्ट्रानिक तरीके से निगरानी किए जाने के दौरान नियमों के उल्लंघन का भी आरोप है। उन्हें 16 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था।

अभियोजन पक्ष ने अधिकारियों को बताया कि कोविड-19 महामारी से आदित्य काफी घबरा गए थे, जिसकी वजह से वह भारत की फ्लाइट पकड़ने के बजाय हवाईअड्डे के एक टर्मिनल पर ही रुक गए। लोग उन्हें खाना दे दिया करते थे। इस दौरान वह हवाईअड्डे के शौचालय समेत अन्य सार्वजनिक सुविधाओं का इस्तेमाल करते थे। वह हवाईअड्डा कर्मियों को एक आइडी बैज दिखाते थे, जिसे एक प्रबंधक ने गत वर्ष अक्टूबर में खो दिया था। उनकी गिरफ्तारी के बाद ट्रांसपोर्ट सिक्योरिटी डिपार्टमेंट एडमिनिस्ट्रेशन ने जांच शुरू कर दी थी। विमानन विभाग की प्रवक्ता क्रिस्टीन कारिनो साल की शुरुआत में ट्रिब्यून को एक बयान में बताया था, ‘आदित्य ने नियम का उल्लंघन नहीं किया, न ही उन्होंने किसी सुरक्षित क्षेत्र में अनुचित तरीके से प्रवेश किया। वह वहां पर प्रतिदिन आने वाले हजारों यात्रियों की तरह ही आए थे।’

पढ़ाई के लिए छह साल पहले गया था अमेरिका

आदित्य स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए छह साल पहले अमेरिका आए थे। पिछले साल 19 अक्टूबर को उन्होंने लास एंजिलस से शिकागो के लिए फ्लाइट पकड़ी थी, ताकि वह भारत लौट सकें, लेकिन बीच में ही रुक गए। वर्ष 2019 में मास्टर डिग्री पूरा होने के बाद वह कैलिफोर्निया के आरेंज में एक व्यक्ति के साथ रहने लगे थे। उसने बताया कि आदित्य उनके बुजुर्ग की पिता की देखभाल और दूसरे काम में मदद करते थे, जिसके बदले उन्हें रहने की जगह दी गई थी।

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