कोरोना के मरीजों में इस घातक वायरस के प्रभावों को लेकर लगातार शोध हो रहे हैं। एक नए अध्ययन में सामने आया है कि लंबे समय तक कोरोना पीड़ित रहने के बाद जिन लोगों में एकाग्रता और याददाश्त में कमी की दिक्कतें होती हैं उनमें डिमेंशिया का खतरा बढ़ता है।
सिंगापुर, आइएएनएस। कोरोना के मरीजों में इस घातक वायरस के प्रभावों को लेकर लगातार शोध किए जा रहे हैं। अब एक नए अध्ययन में सामने आया है कि लंबे समय तक कोरोना पीड़ित रहने के बाद जिन लोगों में एकाग्रता और याददाश्त में कमी की दिक्कतें होती हैं, उनमें डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययन में बताया गया है कि कोरोना वायरस के कारण डिमेंशिया को लेकर शुरूआती परिवर्तन समय से पहले भी हो सकते हैं।
अध्ययन करने वाले दल का नेतृत्व करने वाले और बैनर सन हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर अलीरेजा ने बताया कि डिमेंशिया ऐसी स्थिति है, जिसमें किसी व्यक्ति की याद रखने, सोचने या निर्णय लेने की क्षमता कम होने लगती है। इससे पीड़ित व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन में दिक्कतें आने लगती हैं। आमतौर पर डिमेंशिया 65 या इससे अधिक आयु के व्यक्ति में होता है। कोरोना इस बीमारी की प्रक्रिया को तेजी से बढ़ा सकता है। अध्ययन में कोविड से लोगों में स्वाद और गंध जाने के साथ ही एंग्जाइटी और सोने की समस्या भी देखने को मिली है।
कोरोना के पचास से ज्यादा प्रभाव देखे गए हैं
यही कारण है कि विज्ञानियों ने टीकाकरण की जरूरत पर बल दिया है। जर्नल साइंटीफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के पचास से ज्यादा प्रभाव देखे गए हैं। इनमें बालों का झड़ना, सांस में कमी, सिरदर्द, खांसी के साथ ही डिमेंशिया, डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसी दिक्कतें भी पहचानी गई हैं। ये सभी कोरोना की चपेट में आने के अगले छह महीनों में देखी गईं। स्ट्रोक और डिमेंशिया जैसी न्यूरोलाजिकल डिसआर्डर काफी कम पाए गए थे, लेकिन इंटेसिव केयर (ICU) में भर्ती लोगों में 7 प्रतिशत को स्ट्रोक और लगभग 2 प्रतिशत को डिमेंशिया से ग्रस्त पाया गया।