जब बालक के रूप में लड्डू खाने आए थे कृष्‍ण, नाम पड़ा था ‘लड्डू गोपाल’; पढ़ें दिलचस्‍प कहानी

जन्‍माष्‍टमी के छह दिन बाद भगवान श्रीकृष्‍ण का नाम करण भी किया जाता है। इस दिन इनकी विधि पूर्वक पूजा की जाती है। ये तो हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण को कई नामों से बुलाया जाता है। लड्डू गोपाल काफी प्रसिद्ध है।

 

लखनऊ,  इस बार 19 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी को श्री कृष्ण जन्मोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। जन्‍माष्‍टमी के छह दिन बाद भगवान श्रीकृष्‍ण का नाम करण भी किया जाता है। इस दिन इनकी विधि पूर्वक पूजा की जाती है। ये तो हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण को कई नामों से बुलाया जाता है। जिसमें श्याम, मोहन, लड्डू गोपाल, बंसीधर, कान्हा जैसे कई नाम शामिल हैं। इनमें लड्डू गोपाल काफी प्रसिद्ध है। आज हम इस लेख में बताएंगे कि भगवान कृष्ण का नाम लड्डू गोपाल कैसे और क्यों पड़ा?

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ऐसे पड़ा लड्डू गोपाल नाम : ब्रज भूमि में भगवान श्रीकृष्ण के एक परम भक्त कुम्भनदास रहते थे। कुम्भनदास का एक पुत्र रघुनंदन था। कुम्भनदास हर वक्‍त कृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे और पूरे नियम से भगवान की पूजा और सेवा किया करते थे। वे उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाते थे, ताकि उनकी सेवा में कोई कमी न रह जाए। एक दिन वृन्दावन से उनके लिए भागवत कथा करने का न्योता आया।

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श्री कृष्‍ण को समय पर भोग लगाते रहना : पहले तो कुम्भनदास ने मना किया लेकिन कुछ सोच विचार कर बाद में वे कथा में जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि भगवान की सेवा की तैयारी करके वे रोजाना कथा करके वापस लौट आएंगे जिससे भगवान का सेवा नियम भी नहीं छूटेगा। उन्होंने अपने पुत्र को समझा दिया कि वे भोग तैयार कर चुके हैं, तुम्हें बस समय पर ठाकुर जी को भोग लगा देना है। इसके बाद वे वहां से प्रस्थान कर दिए।

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पुत्र के आग्रह से बालक बन प्रकट हुए श्री कृष्‍ण : कुम्भनदास के पुत्र रघुनंदन ने भोजन की थाली कृष्‍ण के सामने रखी और सरल मन से आग्रह किया कि ठाकुर जी आओ और भोग लगाओ। उसके बाल मन में यह छवि थी कि वे आकर अपने हाथों से भोजन करेंगे, जैसे हम सभी करते हैं। उसने बार-बार आग्रह किया लेकिन भोजन तो वैसे का वैसे ही रखा रहा। अब रघुनंदन उदास हो गया और रोते हुए पुकारा कि हे कृष्‍ण आओ और भोग लगाओ। कहते हैं न जो सच्‍चे हृदय से भगवान को पुकारता है तो भगवान को आना ही पड़ता है।

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कुंभनदास को बेटे पर होने लगा था शक : रघुनंदन की इस पुकार के बाद भगवान कृष्‍ण ने बालक का रूप धारण किया और भोजन करने बैठ गए। जब कुंभनदास ने घर आकर रघुनंदन से प्रसाद मांगा तो उसने कह दिया कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया। कुंभनदास को लगा बच्चे को भूख लगी होगी वही सारा भोजन खा गया होगा। लेकिन अब तो ये रोज की कहानी हो गई थी। अब कुंभनदास को शक होने लगा। तो उन्होंने एक दिन लड्डू बनाकर थाली में रखे और छुपकर देखने लगे कि रघुनंदन क्या करता है।

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कुंभनदास को लड्डू हाथ में लिए दिखे भगवान कृष्‍ण : रघुनंदन ने रोज की तरह ही भगवान कृष्‍ण को पुकारा तो वे बालक के रूप में प्रकट होकर आए और लड्डू खाने लगे। यह देखकर कुम्भनदास दौड़ते हुए आए और प्रभु के चरणों में गिरकर विनती करने लगे। उस समय कृष्‍ण के एक हाथ मे लड्डू और दूसरे हाथ वाला लड्डू मुख में जाने को ही था कि वे एकदम मूर्ति हो गए। उसके बाद से ही उनकी इसी रूप में पूजा की जाती है और वे ‘लड्डू गोपाल’ कहलाए जाने लगे।

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