अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक काबुल की जेलों में कैद पत्रकारों ने बताया कि उन्हीं जेलों में कैद अन्य पत्रकारों के साथ कितने जुल्म हुए। वह कैद में रहने के दौरान लगातार दीवार के पार आदमी और औरतों के पीटे जाने और चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनते रहे।
काबुल, अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आते ही क्रूरता की हदें पार होने लगी हैं और हर तरफ दहशत का माहौल है। महिलाओं और पत्रकारों को मारने-पीटने और तरह-तरह से प्रताड़ित किए जाने के सबसे अधिक मामले सामने आ रहे हैं। जेल की दीवारों के पार से पत्रकारों के दर्द से चीखने, तड़पने और महिलाओं के रोने की आवाजें सुनी जा रही हैं। लिहाजा, संयुक्त राष्ट्र की एक उच्चाधिकारी ने तालिबान प्रशासन ने महिलाओं के अधिकारों का आदर करने की अपील की है।
अफगानिस्तान में महिलाओं के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर उन्हें बुरी तरह पीटे जाने का विरोध करते हुए संयुक्त राष्ट्र में महिला मामलों की प्रभारी प्रमिला पैटन ने कहा कि वह यह देखकर स्तब्ध और आहत हैं कि अफगानिस्तान की महिलाओं को सिर्फ इसलिए बर्बरता से पीटा जा रहा है और कोड़े मारे जा रहे हैं क्योंकि वह अपने मूलभूत अधिकारों के लिए शांति से प्रदर्शन कर रही हैं। मैं अपनी आजादी के लिए आवाज उठाने वाली इन अफगान महिलाओं के साथ हूं।
पैटन ने कहा कि वह तालिबान से आग्रह करती हैं कि वह अफगानी महिलाओं और लड़कियों के सभी अधिकार देना सुनिश्चित करें। तालिबान को अपने वचन का पालन करते हुए अफगानिस्तान के सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में महिलाओं को समान अधिकार देने चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में विशेष प्रतिनिधि डेबोरा लियोंस ने सुरक्षा परिषद में कहा कि नई वास्तविकता यही है कि अफगानिस्तान के लाखों लोगों की जान पूरी तरह से तालिबान के रहमोकरम पर है। संयुक्त राष्ट्र को यह भी देखना होगा कि वह तालिबान की स्वयंभू सरकार के उच्चस्तरीय अफसरों से किस तरह से संपर्क करेगी।
तालिबान ने पत्रकारों को बिना किसी जुर्म के जेलों में ठूंसना शुरू कर दिया
इस बीच, अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक काबुल की जेलों में कैद पत्रकारों ने बताया कि उन्हीं जेलों में कैद अन्य पत्रकारों के साथ कितने जुल्म हुए। वह कैद में रहने के दौरान लगातार दीवार के पार आदमी और औरतों के पीटे जाने और चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनते रहे। दर्द में तड़पकर रोती-बिलखती महिलाओं की आवाजें लगातार आती रहीं। तालिबानी आतंकियों ने पत्रकारों की पहचान करते ही उन्हें बिना किसी जुर्म के जेलों में ठूंसना शुरू कर दिया है। इनमें से बहुत से पत्रकारों को काबुल में हुए प्रदर्शन को कवर करने के लिए मार-मार कर अधमरा कर दिया गया था।
एतिलात्रोज अखबार के रिपोर्टर तकी दरियाबी और नेमातुल्लाह नकदी को बुधवार की सुबह महिलाओं का प्रदर्शन कवर करने के लिए बंदी बनाया गया था। इसी तरह, दो अन्य पत्रकार अबेर शेयगन, लुतफाली सुल्तानी अपने संपादक कादिम करीमी के साथ जैसे ही पुलिस स्टेशन अपने बंदी बनाए गए साथियों का पता करने पहुंचे, उन्हें पहले धक्के मारकर थप्पड़ों से नवाजा गया। फिर मोबाइल फोन समेत उनका सारा सामान छीन लिया। इन तीनों पत्रकारों को एक छोटी सी कोठरी में बंद किया गया जहां पहले से और 15 लोग बंद थे। इनमें से दो रायटर के रिपोर्टर और एक तुर्की की समाचार एजेंसी अनादोलु का रिपोर्टर था। वहां बंद रहने के दौरान इन लोगों ने बाकी साथियों से दरियाबी (22) और नकदी (28) के साथ हुए जुल्मों की दास्तान सुनी। दोनों को बेदर्दी से पीटा गया। उनके शरीर के निचले हिस्सों में कोड़ों के निशान हैं। उनके चेहरों और बाजुओं पर भी लाल खून की धारियां पड़ी हुई हैं। उन्हें बंदूकों से भी पीटा गया। कई घंटों की मारपीट के बाद हालांकि इन पांचों पत्रकारों को छोड़ दिया गया लेकिन यह सभी अधमरी सी हालत में कैद से बाहर आए।
पत्रकारों पर हो रहे अत्याचार को देखते हुए जर्मनी ने अफगानिस्तान में तैनात अंतरराष्ट्रीय प्रसारणकर्ता डेश वेल के दस संवाददाताओं को तत्काल वहां से निकालकर पाकिस्तान भेज दिया है। इन दस में एक महिला पत्रकार भी है।