अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को पदभार ग्रहण किए करीब 10 महीने पूरे हो रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद जो बाइडन का ग्राफ तेजी से बढ़ा था लेकिन उनके कार्यकाल के कुछ महीनों के बाद यह ग्राफ तेजी से नीचे आया है।
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को पदभार ग्रहण किए करीब 10 महीने पूरे हो रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद जो बाइडन का ग्राफ तेजी से बढ़ा था, लेकिन उनके कार्यकाल के कुछ महीनों के बाद यह ग्राफ तेजी से नीचे आया है। बाइडन के लिए यह चिंता का विषय है। बाइडन ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में कई तरह की योजनाओं के साथ कोरोना महामारी से राहत, बुनियादी ढांचे में निवेश और सरकारी सुरक्षा को बढ़ाने का ऐलान किया था। आखिर हाल के दिनों में बाइडन की लोकप्रियता के ग्राफ में क्यों गिरावट आई है। क्या है इसकी बड़ी वजह। डेमोक्रेटिक राजनीति पर क्या होगा असर।
पिछले डेढ़ महीनों में बाइडन की लोकप्रियता में भारी कमी
पिछले डेढ़ महीनों में बाइडन की लोकप्रियता में भारी कमी देखी गई है। उनके सामने कई तरह की चुनौती खड़ी हो गई हैं। दरअसल, अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद बाइडन की छवि को धक्का लगा है। पहली बार उनकी छवि नकारात्मक हुई है। इसके अलावा देश में बढ़ती महंगाई और कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ाया है। बाइडन प्रशासन की क्षमताओं पर सवाल खड़े हुए हैं।
1- कोरोना महामारी के चलते नीचे गिरा ग्राफ
- कोरोना महामारी ने बाइडन प्रशासन के ग्राफ को नीचे गिराया है। बाइडन सरकार यह मानती आई है कि उनके प्रशासन की सफलता कोरोना महामारी को प्रभावी ढंग से निपटने पर निर्भर करती है। बाइडन प्रशासन को एक समय ऐसा लगा था कि उन्होंने कोरोना पर जीत पा ली हे। जुलाई में बाइडन ने अमेरिकी नागरिकों से कहा था कि उन्हें इस वायरस से आजादी मिलने वाली है। लेकिन कोरोना के डेल्टा वेरिएंट के हमले से अमेरिका को एक बार फिर उसी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। अमेरिका में फिर से नियम सख्त हो गए। अमेरिका में अस्पताल उन मरीजों से भरने लगे जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगाई थी।
- डेल्टा वेरिएंट के कहर के बाद बाइडन के सुर बदल गए। उन्होंने वैक्सीन न लगवाने वाले 25 फीसद लोगों को पूरे राष्ट्र को खतरे में डालने के लिए दोषी ठहराया। अमेरिका में बड़ी कंपनियों में कर्मचारियों के लिए वैक्सीनेशन और टेस्टिंग को अनिवार्य कर दिया गया। इस फैसले के राजनीति प्रभाव पड़े। बाइडन के इस फैसलों को अमेरिका में खूब समर्थन मिला। एक सर्वे में 60 फीसद लोगों ने बाइडन की इस नीति का समर्थन किया, लेकिन बाइडन प्रशासन के लिए यह फायदमेंद तब होगा जब कड़े फैसलों से बेहतर नतीजें भी सामने आएं।
2- अफगान नीति पर बाइडन प्रशासन की किरकिरी
- बाइडन प्रशासन की अफगानिस्तान नीति ने पहले तो उनकी रेटिंग बढ़ाई फिर उनकी उस रेटिंग में गिरावट आ गई। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी राष्ट्रपित बाइडन के लिए एक उपलब्धि बनकर सामने आई। हालांकि, अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान में उपजी अराजकता की स्थिति ने बाइडन की रेटिंग में तेजी से गिरावाट दर्ज की। तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे को अमेरिकी हार के रूप में दिखाया गया। अफगानिस्तान में उपजी अराजकता के लिए अमेरिका को दोषी ठहराया गया।
- हालांकि, डेमोक्रेटिक पार्टी को लगता है कि समय के साथ अफगानिस्तान का मुद्दा अपना राजनीतिक प्रभाव खत्म कर देगा। हालांकि, ये आशंका प्रबल है कि चुनाव के दौरान अफगान नीति एक बड़ा मुद्दा बनेगा। उधर, रिपब्लिकन पार्टी इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाए रखना चाहती है। विपक्ष बाइडन प्रशासन में विदेश मंत्री एंटनी ब्लिकन का इस्तीफा मांग रहे हैं। बाइडन प्रशासन के लिए सकंट की बात यह है कि इस्तीफा मांगने वालों में कुछ डेमोक्रेट्स प्रतिनिधि भी शामिल हैं। अपनी अफगान नीति को लेकर बाइडन को पार्टी के अंदर और बाहर दोनों विरोध का सामना करना पड़ रहा है। विपक्ष यह भी आरोप लगा रहा है कि तालिबान का अफगानिस्तान इस्लामिक चरमपंथियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन गया है।
3- कूटनीतिक स्तर पर बाइडन की किरकिरी
- बाइडन प्रशासन को घरेलू ही नहीं बल्कि वैश्विक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। बाइडन आठ वर्षों तक उपराष्ट्रपति पद पर रहे। सीनेट में विदेशी संबंध समिति में उनका लंबा अनुभव रहा है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के वह जानकार माने जाते हैं। लेकिन हाल में अमेरिका और आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच हुए आकस समझौते के कारण फ्रांस नाराज हो गया। इस समझौते के चलते अमेरिका का एक सच्चा दोस्त फ्रांस नाराज हुआ। इसके चलते अमेरिका को फ्रांस से माफी मागंनी पड़ी। इस फैसले से बाइडन प्रशासन की काफी किरकिरी हुई।
- यूरोपीय संघ को यह उम्मीद थी कि बाइडन प्रशासन अपने पूर्ववर्ती ट्रंप प्रशासन की अमेरिका फर्स्ट नीति में बदलाव करेगा। उनके लिए यह करार बड़ा झटका था। बाइडन प्रशासन की इस नीति से यूरोपीय संघ के साथ संबंधों में प्रतिकूल प्रभाव दिखा। हालांकि, यह सत्य है कि अमेरिका के मतदाताओं का अमेरिकी फ्रांस के रिश्तों से बहुत लेनादेना नहीं है, लेकिन आने वाले वक्त में इसके प्रभावों के लेकर एक विवाद जरूर हो सकता है।