ड्रिप नहीं डिवाइस से सीधे मांसपेशियों में पहुंचेगी दवा, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने तैयार किया डिजाइन,

अब यहां ऐसी डिवाइस की डिजाइन तैयार की गई है जिससे दवा मांसपेशियों में सीधे पहुंचाई जा सकेगी। बायोकेमेस्ट्री विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाक्टर मुनीश पांडेय के निर्देशन में यह नया शोध हुआ है। इस डिवाइस की डिजाइन को लेकर चिकित्सक भी उत्साहित हैं।

 

प्रयागराज।  इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इवि) का बायोकेमेस्ट्री विभाग इन दिनों नए शोध के लिए ख्याति अर्जित कर रहा है। थ्री डी प्रिंटेड मास्क की डिजाइन तैयार करने के बाद अब यहां ऐसी डिवाइस की डिजाइन तैयार की गई है, जिससे दवा मांसपेशियों में सीधे पहुंचाई जा सकेगी। बायोकेमेस्ट्री विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाक्टर मुनीश पांडेय के निर्देशन में यह नया शोध हुआ है। इस डिवाइस की डिजाइन को लेकर चिकित्सक भी उत्साहित हैं। वह इसे उपचार में फायदेमंद मानते हैं। भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के कोलकाता स्थित कंट्रोलर जनरल आफ पेटेंट्स डिजाइन एंड ट्रेडमार्क ने 20 साल के लिए इस डिजाइन के पेटेंट को मान्यता दे दी है।

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पत्नी की पीड़ा देख उठाया बीड़ा

कहते हैं कि आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है। आपदा काल में अक्सर ऐसा होता है। डाक्टर मुनीश के मन भी कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में यह विचार जन्मा। दिसंबर में उनकी पत्नी वंदना पांडेय के पैर की हड्डी टूट गई। दिसंबर से अप्रैल तक उन्हें बीच-बीच में हर 15 दिन में अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। मुनीश बताते हैं कि डाक्टर ड्रिप के जरिए शरीर में दवा पहुंचाते थे। कई बार ड्रिप खुद झटके से निकल जाती थी, तब शरीर के दूसरे हिस्सों में ड्रिप लगाई जाती। इससे सूजन के साथ रक्तस्राव होता और पीला द्रव्य शरीर से निकलने लगता।

असिस्टेंट प्रोफेसर कहते हैं कि पत्नी की तकलीफ देख उन्होंने ऐसी डिवाइस तैयार करने की सोची जिससे दवा मांसपेशियों में आसानी से पहुंचाई जा सके। अलग-अलग क्षेत्र के दिग्गजों की टीम बनी और उनके परामर्श से डिवाइस की डिजाइन तैयार की गई। पेटेंट के लिए आवेदन किया, जिसे मंजूरी भी मिल गई। वैसे इस डिजाइन के अनुरूप डिवाइस बनाने की दिशा में फिलहाल किसी कंपनी ने पहल नहीं की है। दरअसल पहले यह पेटेंट गजट में प्रकाशित होगा। इसके बाद यदि कोई कंपनी संपर्क करती है तो उसे डिजाइन सौंपी जाएगी। वह उसे बाजार में उतारेगी।

यह है डिवाइस की खासियत

इस डिवाइस को हाथों में चिपकाया जा सकेगा। इसमें सीरिंज भी लगी होगी। साथ ही, एक बटन होगा। इस बटन को दबाकर आवश्यकतानुसार आइवी फ्लूड, रक्त अथवा अन्य दवाएं मरीज के शरीर में पहुंचाई जा सकेंगी। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज के सर्जन डाक्टर संतोष सिंह कहते हैं कि कई बार ड्रिप लगाने के बाद वह खुद बंद हो जाती है। ऐसा भी होता है कि यदि मरीज के शरीर में खून चढ़ाया जाता है तो खत्म होने पर शरीर से खून पैकेट में वापस जाने लगता है। डिवाइस में ऐसी व्यवस्था भी है कि वह खुद लाक हो जाती है। इस लिहाज से चिकित्सा जगत के लिए यह खोज काफी फायदेमंद साबित होगी।

टीम में दक्षिण भारत के भी विज्ञानी

डाक्टर मुनीश के अलावा नारायण ट्रांसलेशन रिसर्च सेंटर और नारायण मेडिकल कालेज नेल्लोर के डा. सिवाकुमार विजयाराघवलु, रामया यूनिवर्सिटी बेंगलुरू में एप्लाइड साइंस विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाक्टर सेलवम अर्जुनन, क्रिश्तु जयंती कालेज बेंगलुरू में लाइफ साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर डाक्टर एस विजयानंद और डाक्टर चल्लाराज इमैनुअल, इंडियन एकेडमिक डिग्री कालेज बेंगलुरू में माइक्रोबायोलाजी विभाग के अध्यक्ष डाक्टर पी राजाराजन, आशुतोष हास्पिटल एंड ट्रामा सेंटर के निदेशक व प्रयागराज के वरिष्ठ सर्जन डाक्टर यूबी यादव, पुडुचेरी के डाक्टर पी कार्थिगेयन और शोध छात्र जैनब फिरोज, प्रियंका गौतम, डाक्टर अनुराग मिश्र यह डिवाइस बनाने वाली टीम में शामिल हैं।

इन मरीजों को मिलेगी राहत

डाक्टर मुनीश बताते हैं कि लंबी बीमारी से जूझ रहे मरीजों की मांसपेशियों में सीधे दवाएं पहुंचाई जा सकती हैं। यह दवाएं सीधे प्रभावित जगह पर आर्गन तक पहुंचाई जा सकती हैैं। ऐसे मरीजों की संख्या आम मरीजों की अपेक्षा अधिक होती है। भविष्य में इनकी संख्या बढऩे की भी संभावना है। इस डिवाइस से नैनोमेडिसिन दवाएं यानी ऐसी दवाएं जो सूक्ष्म मात्रा में होती हैं, उन्हें भी मांसपेशियों में आसानी से पहुंचाया जा सकता है। इससे साइड इफेक्ट भी कम रहेगा।

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‘यह डिवाइस मरीजों के लिए निश्चित तौर पर क्रांतिकारी साबित होगी। यह खासतौर से बच्चों के लिए फायदेमंद है। दरअसल कई बार बच्चों में दवाओं की अधिक डोज पहुंच जाती है और यह फेफड़े के लिए काफी नुकसानदायक साबित होता है। इस डिवाइस से डाक्टरों को भी बार-बार मरीजों के पास नहीं जाना होगा।

– डा.संतोष सिंह, सर्जन स्वरूपरानी नेहरू मेडिकल कालेज प्रयागराज

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‘भविष्य में इस डिवाइस से दवा शरीर में आसानी से पहुंचाई जा सकती है। खास यह है कि बच्चों और बूढ़ों के लिए डिवाइस काफी कारगर साबित होगी। खासतौर से अस्थि रोग पीडि़तों के मामले में यह लाभप्रद होगी। हमें उम्मीद है कि जल्द ही यह बाजार में सुलभ हो जाएगी और हम इसका उपयोग करने लगेंगे।Ó

– डा. यूबी यादव, निदेशक, आशुतोष हास्पिटल एंड ट्रामा सेंटर प्रयागराज

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