रूस की फौज का यूक्रेन की राजधानी कीव में घुसना और चर्नोबिल पर कब्जा करना काफी मायने रखता है। इस पर रूसी राष्ट्रपति के बयान में यूक्रेन को आजाद राष्ट्र के तौर पर न मानना उनकी मंशा को दर्शाता है।
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। यूक्रेन और रूस का संकट दो ही दिन के अंदर काफी बढ़ गया है। रूस के कीव में घुस जाने के बाद हालात और खराब हो गए हैं। रूसी सैनिकों के कदम लगातार आगे बढ़ रहे हैं जिसकी वजह से आम लोगों में दहशत व्याप्त है। कीव का अर्थ केवल एक शहर या राजधानी भर नहीं बल्कि इसका अर्थ इससे कहीं अधिक है। जानकारों की राय में पहले ऐसी उम्मीद नहीं थी लेकिन अब जो दिखाई दे रहा है वो काफी अलग है। रूस की विदेश नीति के जानकार और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फार रशियन एंड सेंट्रल एशियन स्टडीज के प्रोफेसर संजय कुमार पांडे भी इसको लेकर चिंतित है। उन्होंने एक इंटरव्यू में रूस यूक्रेन विवाद पर खुलकर अपनी राय व्यक्त की है।
चर्नोबिल पर कब्जा और कीव में रूस सेना के घुस जाने के बाद यूक्रेन के भविष्य को लेकर उठे सवाल पर उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की कथनी और करनी में काफी अंतर रहता है। उन्हें पहले इस बात की कोई उम्मीद नहीं थी कि रूस की तरफ से इतनी बड़ी सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया जा सकता है। लेकिन अब चीजें काफी तेजी से बदल गई है। राष्ट्रपति पुतिन ने पहले कहा था कि वो केवल डोनेत्सक और लुहांस्क में रहने वाले बहुसंख्यक रूसियों के हितों की रक्षा करना है। उनका कहना था कि यूक्रेन की सरकार इन लोगों के खिलाफ है। उनका ये भी कहना है कि पुतिन इसको युद्ध का नाम न देकर केवल सैन्य कार्रवाई बता रहे हैं। बाद में राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि वो केवल यूक्रेन को डिमिलिट्राइज करना चाहते हैं। अब उनके सैनिक कीव तक पहुंच गए हैं जो उनकी एक अलग मंशा को जता रहा है। प्रोफेसर पांड का मानना है कि कीव में रूसी सेना की मौजूदगी से इस बात का संदेह है कि रूस का मकसद यूक्रेन को केवल डिमिलिट्राइज करना तक नहीं है बल्कि उस पर कब्जा करना भी इसमें शामिल है। हालांकि ये आसान नहीं होगा।
प्रोफेसर पांडे के मुताबिक रूस के लिए यूक्रेन पर अब तक की गई कार्रवाई आसान थी, लेकिन ग्राउंड फोर्स को भेजना आसान नहीं होगा। उन्हें लोगों के साथ सेना का भी कड़ा विरोध झेलना पड़ सकता है। वो मानते हैं कि रूस यूक्रेन के बड़े सैन्य ठिकानों और बड़े औद्योगिक क्षेत्रों या रणनीतिक क्षेत्रों पर हमला कर उसको अपने कब्जे में ले ले। इसके बाद बातचीत की मेज पर आकर यूक्रेन समेत पश्चिमी देशों से मोल-भाव करें। इसमें हो सकता है कि वो ये कहें कि उन क्षेत्र में जहां रूसी बहुल लोग रहते हैं वो रूस में रहेंगे और दूसरे क्षेत्रों से वो अपनी फौज को हटा लेंगे। रूस के ग्राउंड फोर्स भेजने पर ये संकट लंबे समय तक के लिए चल सकता है।
ये पूछे जाने पर कि कीव पर यदि रूसी सेना कब्जा कर लेती है तो इसके क्या मायने होंगे, उन्होंने कहा कि ये यूक्रेन पर कब्जा करने जैसा ही होगा। उनका ये भी कहना है कि कीव रूस की पहचान से जुड़ा है, जिसको वो कभी भी छोड़ना या फिर अपने से अलग नहीं करना चाहता है। रूस कीव को अपना स्प्रीच्वल सेंटर मानता है। अपने एक आर्टिकल में राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन को रूस से जोड़ते हुए लिखा है उनका इसके साथ नैसर्गिक, सांस्कृतिक रिश्ता है। हालांकि दो दिन पहले ही उन्होंने अपने बयान में कहा था कि यूक्रेन का कभी कोई स्वतंत्र असतित्व रहा ही नहीं है। न ही वो कभी स्वतंत्र राज्य था। इससे ये भी स्पष्ट होता है कि वो आने वाले समय में यूक्रेन को एक आजाद राष्ट्र की मान्यता भी नहीं देने वाले हैं।
जेलेंस्की की पुतिन को की गई फोन काल के बारे में पूछे एक सवाल के जवाब में प्रोफेसर पांड ने कहा कि उन्हें इस बात का आभास हो गया होगा कि रूस की मंशा क्या है। उन्हें इस बात का भी पता चल गया होगा कि रूस अब पीछे नहीं हटेगा, इसलिए ही उन्होंने फोन करने का निर्णय लिया। इसके पीछे एक बड़ी वजह ये भी हो सकती है कि उनके यहां से ही ये बात उठ रही थी कि वो इस संबंध में अमेरिका समेत दूसरे पश्चिमी देशों से बात कर रहे हैं लेकिन रूस से सीधे कोई बात नहीं कर रहे हैं, जहां से शायद उन्हें राहत मिल जाए। मुमकिन है कि इस पर विचार करने के बाद उन्होंने ऐसा किया हो। हालांकि प्रोफेसर पांडे का ये भी कहना है कि मोल-भाव का समय फिलहाल निकल गया है।
इस पूरे मामले में भारत के पक्ष को सही बताते हुए प्रोफेसर पांडे का कहना था कि ये बिल्कुल सही रुख है। भारत बार बार ये कह रहा है कि बातचीत से मसले का समाधान किया जाए और इसमें दोनों देशों की संप्रभुता उनके हितों और अखंडता का भी मान रखना जरूरी होगा। दोनों देशों को सुरक्षा की गारंटी भी देनी होगी।