दिल्ली डायलाग: भारतीय कूटनीति से चित हुआ पाक और चीन, रूस और अफगानिस्‍तान के सात पड़ोसी भारत के साथ

क्षेत्रीय सुरक्षा डायलाग ने यह दिखा दिया कि अफगानिस्‍तान में तालिबान हुकूमत में भारत का दृष्टिकोण दुनिया के लोकतांत्रिक देशों के अनुकूल है। भारत की इस पहल से चीन और पाकिस्‍तान की किरकिरी हुई है। आइए जानते हैं कि दिल्‍ली डायलाग को आखिर विशेषज्ञ किस नजरिए से देखते हैं।

 

नई दिल्‍ली, आनलाइन डेस्‍क। अजीत डोभाल के नेतृत्‍व में हो रहे क्षेत्रीय सुरक्षा डायलाग पर चीन और पाकिस्‍तान की पैनी नजर है। अफगानिस्‍तान में तालिबान हुकूमत के बाद भारत की एक बड़ी कूटनीति से पाकिस्‍तान और चीन दोनों अलग-थलग पड़ गए हैं। क्षेत्रीय सुरक्षा डायलाग में अफगानिस्तान के सात अहम पड़ोसी देशों का भारत आना यह दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी मानती है कि अफगान समस्या के समाधान में भारत की भूमिका अहम होगी। क्षेत्रीय सुरक्षा डायलाग ने यह दिखा दिया कि अफगानिस्‍तान में तालिबान हुकूमत में भारत का दृष्टिकोण दुनिया के लोकतांत्रिक देशों के अनुकूल है। भारत की इस पहल से चीन और पाकिस्‍तान की किरकिरी हुई है। आइए जानते हैं कि दिल्‍ली डायलाग को आखिर विशेषज्ञ किस नजरिए से देखते हैं।

कूटनीतिक स्‍तर पर विफल रहा पाकिस्‍तान, भारत ने मारी बाजी

प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि यह पाकिस्‍तान की कूटनीतिक विफलता है। पाकिस्‍तान सरकार की तालिबान के साथ रिश्‍तों ने उसे दुनिया के समक्ष बेनकाब किया है। तालिबान शासन को सपोर्ट कर पाकिस्‍तान ने यह दिखा दिया कि आतंकवाद के प्रति उसका मोह अभी तक गया नहीं है। एफएटीएफ की ग्रे लिस्‍ट में शामिल होने के बाद उसकी विश्‍व विरादरी में काफी किरकिरी हुई है। इस बीच तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद अफगानिस्‍तान को लेकर भारत अपने स्‍टैंड पर कायम रहा है। भारत शुरू से अफगानिस्‍तान समस्‍या का समाधान कूटनीति के जरिए ही खोज रहा था।

आंतरिक सुरक्षा को लेकर चिंतित हुए अफगानिस्‍तान के पड़ोसी राष्‍ट्र

प्रो. हर्ष वी पंत ने कहा कि अफगानिस्तान के बिगड़ते हालात को लेकर पाकिस्तान और चीन को छोड़कर अफगानिस्तान के सारे पड़ोसी राष्‍ट्र बेहद चिंतित हैं। यही कारण है कि दिल्ली डायलाग में रूस, ईरान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान बिना किसी दबाव के शामिल हो रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि दरअसल, अमेरिकी सेना की वापसी के बाद इन अफगानिस्‍तान के पड़ोसी मुल्‍कों की सुरक्षा को लेकर ज्यादा चिंताएं पैदा हो गई हैं। ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और दूसरे मध्य एशियाई देशों ने अपने समाज में अतिवाद बढ़ने को लेकर ज्यादा चिंता जताई है और भारत से कट्टरता को रोकने में मदद भी मांगी है। भारत के इस मंच पर सभी देशों की चिंताए समान है।

अफगान‍िस्‍तान मामले रूस ने निभाया भारत का साथ

प्रो. पंत ने कहा कि अफगानिस्‍तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद रूस निश्चित तौर पर इसे अमेरिका की हार के तौर पर देख रहा है, लेकिन उसे अब इस बात का अहसास है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद उसके पड़ोसियों व उसके लिए काफी खतरा पैदा कर सकते हैं। उन्‍होंने कहा कि पाकिस्तान की तरफ से यह लगातार दिखाया जा रहा है कि रूस उसकी अफगान नीति के साथ है, जबकि हकीकत यह है कि अफगानिस्तान को लेकर भारत और रूस लगातार एक दूसरे के संपर्क में हैं। उन्‍होंने कहा कि हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के बीच हुई टेलीफोन वार्ता में अफगान का मुद्दा सबसे अहम था। रूस के लिए दिल्‍ली डायलाग काफी अहम है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत आने वाले रूस के सुरक्षा परिषद के सचिव की कुछ ही हफ्तों में यह दूसरी भारत यात्रा है। उन्‍होंने कहा कि दिल्ली डायलाग के बाद अगर आठों देशों की तरफ से एक संयुक्त बयान जारी होता है तो यह पाकिस्तान और चीन दोनों को एक महत्वपूर्ण संदेश होगा।

क्षेत्रीय सुरक्षा डायलाग में दिखे एक सुर

1- इस क्षेत्रीय सुरक्षा डायलाग में हिस्सा लेने के लिए उज्बेकिस्तान के सुरक्षा परिषद के सचिव विक्टर माखुमुदोव और ताजिकिस्तान के सुरक्षा परिषद के सचिव नसरुल्लो महमूदजोदा पहुंच चुके हैं। इन दोनों के साथ डोभाल की अलग-अलग द्विपक्षीय वार्ता हुई। दोनों बैठकों में अफगानिस्तान का मुद्दा ही प्रमुख रहा। अफगानिस्‍तान मामले में दोनों देशों की चिंताएं भारत के समान ही हैं। दोनों देशों के बीच सीमा को सुरक्षित रखने वाले ढांचागत विकास में सहयोग को लेकर भी बात हुई है।

2- बता दें कि ताजिकिस्तान के एनएसए ने हाल के दिनों में अफगानिस्तान में बढ़ रहे आतंकी हमलों को लेकर अपनी चिंता जताई है। उन्‍होंने कहा था कि अफगान-ताजिकिस्तान सीमा पर हालात बहुत ही चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं। उज्बेकिस्तान और भारत दोनों देशों की यह मानते हैं कि अफगानिस्तान में बाहरी देशों का हस्तक्षेप पूरी तरह से बंद होना चाहिए। साथ ही दोनों यह भी मानते हैं कि अफगानिस्तान की नई सरकार को मान्यता देने से पहले उस सरकार को आंतरिक तौर पर भी पूरी तरह से वैध माना जाना चाहिए। इन दोनों देशों के साथ मिलकर अफगानिस्तान में मानवीय मदद मुहैया कराने के विकल्प पर भी बात हुई है।

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