कमोबेश पुलिस चौकियों की हालत भी यही है। जनता से जुड़े अतिमहत्वपूर्ण विभाग के प्रति सरकार की उदासीनता ठीक नहीं है। पुलिसकर्मियों के प्रमोशन में भी यही हाल है पुलिसकर्मियों के प्रमोशन में सरकारी लेट लतीफी किसी से छिपी नहीं है।
आवाज़ — ए — लखनऊ — अनिल मेहता” ! उत्तर प्रदेश में यह तो सर्वविदित है कि पुलिस से बड़ा जनसेवक कोई नहीं है, यूं तो हर सरकारी कर्मचारी जनसेवक ही होता है पर क्या जिलाधिकारी, नगर आयुक्त या जनता के सबसे बड़े जनसेवक किसी मंत्री से मिलना आसान है क्या? पुलिसकर्मी से जनता को मिलना आसान है पुलिसकर्मी हर जगह उपलब्ध है, थानों में पुलिसकर्मियों की भारी कमी है।
इसको देखते हुए उ०प्र० सरकार को भारी , संख्या में पुलिसकर्मियों की भर्ती करनी चाहिए। चौकियों में एक चौकी प्रभारी तथा दीवान बैठता है कोई आकस्मिक घटना होने पर अक्सर सिपाहियों का आकाल दिखता है। ख़ासतौर से महिला सिपाहियों की संख्या तो बहुत ही कम है,
थाने में बैठा थानाध्यक्ष क्या करें अपना सिर धुनने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। थानाध्यक्ष या चौकी प्रभारी यह कहता है कि थाने या चौकी मे पर्याप्त फोर्स नहीं है तो जनता नाराज और जनता नाराज तो पुलिस विभाग के उच्चाधिकारी नाराज अब सोचने की बात यह है कि थानाध्यक्ष या चौकी प्रभारी क्या करे?
यूं भी जनता के सबसे निकट रहने वाले पुलिसकर्मियों के प्रति सरकारी उदासीनता समझ में नहीं आती पुलिसकर्मियों के आवास जर्जर अवस्था मे हैं। कमोबेश पुलिस चौकियों की हालत भी यही है। जनता से जुड़े अतिमहत्वपूर्ण विभाग के प्रति सरकार की उदासीनता ठीक नहीं है। पुलिसकर्मियों के प्रमोशन में भी यही हाल है पुलिसकर्मियों के प्रमोशन में सरकारी लेट लतीफी किसी से छिपी नहीं है। जनता से जुड़े अतिमहत्वपूर्ण विभाग के लिए सरकार को सदैव सतर्क रहना होगा।