विदेश मंत्री ने कहा कि हम मानते हैं कि सुरक्षा परिषद के ढांचे में बदलाव ओवरडयू है। 80 साल पहले दि्तीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र को वैश्विक संस्था के रूप में तैयार किया गया था।
न्यूयॉर्क, एजेंसी। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के लिए काफी लंबे समय से विश्व के देशों के साथ लामबंदी कर रहा है। फिर भी इस पर रोक लगाई जा रही है। इसमें फिलहाल चीन और पाकिस्तान जैसे देश मुख्य अड़ंगा साबित हो रहे हैं। भारत के अलावा जापान, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील जैसे देश भी सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने की कतार में है।
जयशंकर ने अरविंद पनगढ़िया के सवालों का दिया जवाबविदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि जब मैंने कहा कि मैं इस पर काम कर रहा हूं तो मैं गंभीर था। जयशंकर कोलंबिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स के राज सेंटर में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और नीति आयोग के पूर्व वाइस चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया से बातचीत कर रहे थे।
वर्तमान में UNSC में पांच स्थायी सदस्य हैं। पांच स्थायी सदस्य रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं और ये देश किसी भी मूल प्रस्ताव को वीटो कर सकते हैं। इसके अलावा सुरक्षा परिषद में 10 गैर स्थायी सदस्य देश शामिल हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दो साल के कार्यकाल के लिए चुना जाता है। पिछले कुछ सालों से समकालीन वैश्विक वास्तविकता को प्रतिबिंबित करने के लिए स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने की मांग लगातार बढ़ रही है।
वैश्विक संस्था में जल्द बदलाव की उम्मीद कर रहा है भारतजयशंकर ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से एक बहुत कठिन काम है क्योंकि दिन के अंत में यदि आप कहते हैं कि हमारी वैश्विक व्यवस्था की परिभाषा क्या है, 5 स्थायी सदस्य वैश्विक व्यवस्था के बारे में एक बहुत ही महत्वपूर्ण परिभाषा हैं। इसलिए यह एक बहुत ही मौलिक और बहुत गहरा बदलाव है, जिसकी हम तलाश कर रहे हैं।
दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश को वैश्विक संस्था में शामिल नहीं करना अच्छा नहींउन्होंने कहा कि कुछ ही वर्षों में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। यह दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला समाज होगा। जयशंकर ने कहा कि अगर ऐसा देश प्रमुख वैश्विक परिषदों में नहीं है, तो जाहिर है कि यह हमारे लिए अच्छा नहीं है, लेकिन मैं यह भी आग्रह करूंगा कि यह वैश्विक परिषद के लिए अच्छा नहीं है।
उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि हर गुजरते साल के साथ मुझे लगता है कि दुनिया में भारत के लिए अधिक से अधिक समर्थन हासिल है। आज हम दुनिया के बहुत बड़े हिस्से के विश्वास और भरोसे को संभाल कर रखते हैं। मैं इसकी तुलना मौजूदा पी 5 से नहीं करना चाहता, लेकिन मैं कम से कम यह कहूंगा कि बहुत सारे देश शायद सोचते हैं कि हम उनके लिए उच्च स्तर की सहानुभूति और सटीकता के साथ बोलते हैं। इसे कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध के दौरान भी देखा गया है, जब दुनिया के तमाम देशों ने भारत की सहायता और रुख की उम्मीद की थी।