मरते हुए तारे भी पैदा कर सकते हैं नए ग्रह, नए शोध में किया गया दावा

हमारे सौरमंडल में पृथ्वी समेत सभी अन्य ग्रह सूर्य के बनने के कुछ समय बाद ही बने थे। हमारे सूर्य के 460 करोड़ वर्ष पूर्व बनने के बाद कुछ लाख सालों में ही सूर्य के आसपास का पदार्थ प्रोटोप्लैनेट के रूप में जमा होने लगा था।

 

वाशिंगटन,  हमारा ब्रह्मांड खुद में अनंत रहस्य समेटे हुए है। विश्वभर के विज्ञानी इन्हें उजागर करने के लिए प्रयासरत हैं। इसी कड़ी में खगोलविदों ने एक बड़े रहस्य पर से पर्दा उठाने का दावा किया है। हम जानते हैं कि किसी भी आकाशगंगा में ग्रह सामान्य तौर पर तारों से ज्यादा पुराने नहीं होते हैं। अब केयू ल्युवेन के खगोलविदों के इस नवीन अध्ययन ने इस अवधारणा को बदलने वाले नतीजे दिए हैं। एस्ट्रोनामी एंड एस्ट्रोफिजिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में खगोलविदों ने दावा किया है कि जब तारे अपनी मृत्यु के करीब होते हैं तो उनमें एक नए ग्रह को जन्म देने की संभावना होती है। यदि इस बात की पुष्टि हो जाती है तो ग्रहों के निर्माण के सिद्धांतों में बदलाव की जरूरत पड़ेगी।

हमारे सौरमंडल में पृथ्वी समेत सभी अन्य ग्रह सूर्य के बनने के कुछ समय बाद ही बने थे। हमारे सूर्य के 460 करोड़ वर्ष पूर्व बनने के बाद कुछ लाख सालों में ही सूर्य के आसपास का पदार्थ प्रोटोप्लैनेट के रूप में जमा होने लगा था। उसी पदार्थ की धूल और गैस से बनी प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क से ग्रहों की उत्पत्ति हुई, जिसकी वजह से सभी ग्रह एक तल में सूर्य की परिक्रमा करते हैं। लेकिन धूल और गैसे से बनी इन प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क के लिए जरूरी नहीं है कि वे नवजात तारों के आसपास ही बनें।

वे तारों की निर्माण प्रक्रिया से स्वतंत्र रूप से भी विकसित हो सकती हैं। इस तरह के निर्माण का उदाहरण द्विज तारों (बाइनरी स्टार्स) के आसपास देखने को मिल सकता है, जिसमें से एक तारा मर रहा हो। द्विज तारे दो तारों का जोड़ा होता है जो एक-दूसरे का चक्कर लगाते हुए द्विज तंत्र बनाता है।

सामान्य तौर पर जब सूर्य जैसे मध्यम आकार का तारा अपने अंत समय के पास पहुंचता है तो उसके वायुमंडल का बाहरी हिस्सा अंतरिक्ष में बिखर जाता है, जिसके बाद वह धीरे-धीरे मरने लगता है। इस अवस्था में उसे सफेद बौना कहते हैं, लेकिन द्विज तारों में दूसरे तारे के गुरुत्व खिंचाव के कारण मरते हुए तारे का पदार्थ एक सपाट घूमती डिस्क का रूप ले लेता है।

10 में से एक में संभावना

द्विज तारों में बनी यह डिस्क प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क से बहुत ज्यादा मिलती जुलती है, जिसे खगोलविद हमारी आकाशगंगा के युवा तारों के आसपास देखा करते हैं। यह जानकारी नवीन नहीं है, लेकिन जो नई बात पता चली है वह यह है कि इस डिस्क में ग्रहों के निर्माण के संकेत असमान्य रूप दिखाई नहीं देते हैं। ऐसा 10 में से एक द्विज तारों के तंत्र में देखने को मिल ही जाता है।

क्या कहते हैं विज्ञानी

अध्ययन के प्रथम लेखक और केयू ल्यूवेन में खगोलविद जैक्स क्लुस्का के मुताबिक, हमारा अध्ययन बताता है कि ऐसा सभी द्विज तारों के साथ नहीं होता है। ऐसा होने की संभावना 10 प्रतिशत होती है। यानी 10 में से एक द्विज तारों के तंत्र में ऐसा देखने को मिलता है। अभी इस दिशा में और अध्ययन की जरूरत है।

वर्तमान सिद्धांतों के लिए एक अभूतपूर्व परीक्षण

केयू ल्यूवेन इंस्टीट्यूट आफ एस्ट्रोनामी के प्रमुख प्रो. हैंस वान विंकेल के अनुसार, यह अध्ययन बेहद महत्वपूर्ण है। यदि इससे इस बात की पुष्टि होती है कि द्विज तारों नहीं, एक तारे के मरने के दौरान ही उसमें नए ग्रह को पैदा करने की संभावना होती है तो ग्रह निर्माण के सिद्धांतों में बदलाव लाने की जरूरत पड़ेगी। ग्रह निर्माण के इस असाधारण तरीके की पुष्टि या खंडन वर्तमान सिद्धांतों के लिए एक अभूतपूर्व परीक्षण होगा।

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