गन्ना पेराई सत्र शुरू होते ही यूपी सरकार ने शीरा नीति 2021-22 जारी कर दी है। इस वर्ष भी देशी शराब निर्माताओं के लिए 18 प्रतिशत शीरा आरक्षित है। अन्य राज्यों से शीरा आयात करने से पहले आयातक को आबकारी आयुक्त व शीरा नियंत्रक से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य होगा।
लखनऊ ; गन्ना पेराई सत्र शुरू होते ही उत्तर प्रदेश सरकार ने शीरा नीति 2021-22 जारी कर दी है। इस वर्ष भी देशी शराब निर्माताओं के लिए 18 प्रतिशत शीरा आरक्षित किया गया है। अन्य राज्यों से शीरा आयात करने से पहले आयातक को आबकारी आयुक्त व शीरा नियंत्रक से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य होगा। गुरुवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में नई शीरा नीति पर मुहर लगा दी गई।
अपर मुख्य सचिव संजय आर भूसरेड्डी ने बताया कि शीरा वर्ष 2021-22 में शीरे का अनुमानित उत्पादन 570 लाख क्विंटल के सापेक्ष शराब के लिए आरक्षित शीरे की आवश्यकता 117.32 लाख क्विंटल आंकी गई है। इसीलिए देशी शराब की आपूर्ति करने वाली आसवनियों को पर्याप्त मात्रा में शीरा उपलब्ध कराने के लिए 18 प्रतिशत शीरा आरक्षित किया गया है। साथ ही आरक्षित व अनारक्षित शीरे के मध्य वार्षिक निकासी का अनुपात 1:4.55 निर्धारित किया गया है। उन्होंने बताया कि सभी चीनी मिलों के चलने के बाद शीरे की उपलब्धता व शराब की आवश्यकता के आधार पर आरक्षण के प्रतिशत में बदलाव करने पर विचार किया जा सकेगा।
अपर मुख्य सचिव संजय आर भूसरेड्डी ने बताया कि यदि कोई चीनी मिल या समूह केवल बी-हैवी शीरे का या बी-हैवी व सी-हैवी दोनों प्रकार के शीरे का उत्पादन करता है तो बी-हैवी शीरे की उत्पादित मात्रा को सी-हैवी शीरे के बराबर आगणित करके सी-हैवी शीरे की कुल मात्रा के आधार पर 18 प्रतिशत शीरा की आपूर्ति चीनी मिल या समूह की ओर से देशी शराब के लिए की जाएगी। इसके लिए बी-हैवी शीरे से प्रति क्विंटल 31 एएल अल्कोहल व सी-हैवी शीरे के प्रति क्विंटल 22.5 एएल अल्कोहल रिकवरी के आधार पर गणना की जाएगी।
2021-22 के अवशेष आरक्षित शीरे के बराबर मात्रा को चीनी मिलों की ओर से देशी शराब की आसवनियों को ही बेचते हुए अपनी इस अवशेष देयता को अनिवार्य रूप से जनवरी 2022 तक शून्य करना होगा। शीरा आधारित लघु इकाइयों को शीरे का आवंटन उत्तर प्रदेश शीरा नियंत्रण अधिनियम, 1964 के तहत किया जाएगा। शीरा आधारित नई इकाइयों में एक लाख क्विंटल शीरा प्रतिवर्ष की मांग वाली इकाइयों के मामले में निर्णय लेने का अधिकार आबकारी आयुक्त को दिया गया है।