लखनऊ के दुबग्‍गा क्षेत्र में पांच किमी. रोड पर 80 ट्रामा सेंटर, नियमों को ताक पर रख दो से तीन कमरों में हो रहा इलाज,

सरकारी चिकित्सा संसाधनों पर बढ़ते बोझ और लंबे इंतजार का फायदा उठाने की नीयत से ट्रामा सेंटरों की बाढ़ सी आ गई है। शहर से जुड़े हर राजमार्ग से लेकर गली मुहल्लों तक दो-तीन कमरों के मकान में तथाकथित ट्रामा सेंटर संचालित हैं।

 

लखनऊ । दुबग्गा चौराहे से करीब चार किलोमीटर की दूरी पर हिंदू अस्पताल एंड ट्रामा सेंटर का बोर्ड देखकर हमारी टीम रुक जाती है। बाहर कुछ मरीज ई रिक्शा में बैठे हैं। छोटे से काम्प्लेक्स से कुछ सीढ़ियां उतरकर अंदर नीचे हाल में कुर्सी पर बैठी महिला कर्मचारी से मैंने सवाल किया..डाक्टर साहब हैं, जवाब मिला नहीं, अभी आ रहे होंगे आप काम बताइए..कहा दिखाना है.. तो जवाब मिला इंतजार करना होगा।

टीम ट्रामा सेंटर का हाल देख ही रही थी कि एक महिला कर्मी ने डा. आरिफ को फोन मिला दिया। कर्मचारी ने फोन पकड़ा दिया। डाक्टर साहब बोले बताइये..बताया गया कि दैनिक जागरण से हूं, आपके ट्रामा सेंटर पर आया हूं, मगर यहां कोई डाक्टर या स्टाफ नहीं है। ऐसे में इमरजेंसी में कोई मरीज आ जाए तो आप कैसे उसका इलाज करेंगे। डाक्टर साहब बोले, आपको इससे क्या लेना देना है, कोई मरीज आएगा तो मैं देख लूंगा.. सवाल किया गया.. मान लीजिए मेरे साथ कोई मरीज है तो आप कैसे इलाज करेंगे.. कोई इलाज की सुविधा नही है तो फिर ट्रामा सेंटर का बोर्ड क्यों लगा रखा है..इस पर डाक्टर साहब नाराज हो गए बोले.आप अपना काम कीजिए..जाइए जहां शिकायत करनी है कर दीजिए। इतना कहकर डाक्टर आरिफ ने फोन काट दिया। रिसेप्शनिस्ट ने बताया कि डाक्टर साहब एरा में प्रैक्टिस भी करते हैं।

इससे पहले रास्ते में यूनीक अस्पताल और ट्रामा सेंटर पड़ा। यहां भी एकमात्र डा. महफूज अहमद नहीं थे। हालांकि बोर्ड पर कई डाक्टरों के नाम दर्ज थे। अस्पताल के नाम पर केवल 12 बेड हैं। एंबुलेंस से लेकर ऐसा कुछ नहीं है, जिसे ट्रामा सेंटर होने का एहसास हो। ट्रामा सेंटर का बोर्ड है, लेकिन दिन में ग्यारह बजे वहां मरीजों को देखना वाला कोई नही था। न्यू ग्लैक्सी हास्पिटल ट्रामा एंड मैटरनिटी सेंटर के बोर्ड पर बड़े भारी-भरकम डाक्टरों के नाम थे लेकिन काउंटर पर बताया गया कि डाक्टर साहब अभी आए नहीं है। यहां जरूरत होती है तो फोन कर डाक्टरों और एंबुलेंस को बुला लेते हैं। थोड़ा आगे चलते ही तुलसी हास्पिटल एंड ट्रामा सेंटर दिखा। अंदर गए तो देश राज यादव मुखातिब हुए। खुद को डायरेक्टर बताया। पूछा गया कि आपने ट्रामा सेंटर लिखा है और डाक्टर या कोई इमरजेंसी सुविधा नहीं है। देशराज बोले कि सीएमओ कार्यालय से सेंटर का पंजीकरण है तो हैरानी हुई।

 

टीम दुबग्गा-काकोरी रोड पर ही माही ट्रामा सेंटर पहुंची। यहां भी डाक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ नजर नहीं आया। अंदर दिनेश यादव मिले जिन्होंने खुद को बीएएमएस बताया। पूछा गया कि यहां ट्रामा सेंटर की तो कोई सुविधा और संसाधन नहीं है, इस पर दिनेश ने कहा कि इसका जवाब तो आपको डाक्टर यदुनाथ से ही मिलेगा। यहीं पास में मेड स्टार अस्पताल एंड ट्रामा सेंटर के काउंटर पर मौजूद कर्मचारी ने बताया कि चार आइसीयू बेड सहित 12 बेड हैं। शुक्रवार को दैनिक जागरण ने करीब 80 ट्रामा सेंटर की पड़ताल की जिनमें ट्रामा के नाम पर खेल चल रहा है।

ये हैं ट्रामा सेंटर के मानक

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हरदोई रोड पर दो-तीन कमरों में धड़ल्ले से चल रहे ट्रामा सेंटर

सरकारी चिकित्सा संसाधनों पर बढ़ते बोझ और लंबे इंतजार का फायदा उठाने की नीयत से ट्रामा सेंटरों की बाढ़ सी आ गई है। शहर से जुड़े हर राजमार्ग से लेकर गली मुहल्लों तक दो-तीन कमरों के मकान में तथाकथित ट्रामा सेंटर संचालित हैं। मानक दरकिनार करके शहर में करीब चार सौ ट्रामा सेंटर चल रहे हैं। एंबुलेंस माफिया से लेकर पैथोलॉजी के गठजोड़ पर फलफूल रहे लूट के धंधे की चपेट में आने के बाद मरीजों को जेवर और जमीन तक बेचने पर मजबूर होना पड़ता है। खामोश सिस्टम की नाक के नीचे चल रहे ट्रामा के ड्रामे की।

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