लखनऊ में पार्कों को संवारने की टेंडर प्रक्रिया से भ्रष्टाचार सामने आ गया है। ठेकेदारों ने निर्माण की निर्धारित लागत से पंद्रह प्रतिशत कम कामत में ठेका लिया है। सभी ठेकेदारों ने काम पाने के लिए पंद्रह प्रतिशत कम लागत में काम करने का टेंडर डाला था।
लखनऊ । अब देखिए नगर निगम के अभियंताओं और ठेकेदारों का खेल। जिस काम की लागत नगर निगम ने सौ रुपये निर्धारित की है, उसे ठेकेदार 85 रुपये में करने को तैयार हैं। इसी के साथ ही पचास प्रतिशत कमीशन अलग से बांटेंगे। अब काम की गुणवत्ता कैसी रहेगी? आप ही समझ लीजिए। नया मामला शहर के पार्कों (गुलशन) को संवारने से जुड़ा है। अपने घर के सामने के पार्क को संवारे जाने की सूचना जिस भी मिली, वह खुश हो गया कि अब उनके घर के पास का गुलशन भी महकता नजर आएंगे। रंगबिरंगी फूल नजर आएंगे और टूटी दीवारें और रेलिंग भी ठीक हो जाएंगी। पार्क में पानी होगा। पाथ-वे भी बनेगा। लाइट लगेंगी और बच्चों को भी वहां उछल-कूद करने का मौका मिलेगा। अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो यह शायद आपकी भूल होगी।
पार्कों को संवारने के टेंडर प्रक्रिया से भ्रष्टाचार सामने आ गया है। ठेकेदारों ने निर्माण की निर्धारित लागत से पंद्रह प्रतिशत कम कामत में ठेका लिया है। सभी ठेकेदारों ने काम पाने के लिए पंद्रह प्रतिशत कम लागत में काम करने का टेंडर डाला था। खास यह है कि सभी ठेकेदारों ने इतनी कम लागत में ही काम करने का टेंडर फार्म भरा था। टेंडर फार्मों का परीक्षण किया गया था तो सभी की कीमत निर्धारित लागत से पंद्रह प्रतिशत कम पाई गई है। ऐसे में किसी अब हर काम के लिए लाटरी की गई, जिससे किसी एक को टेंडर दिया जा सके। टेंडर को पास करने के लिए चार दिन पहले ही लाटरी कराई गई है। अब जिस ठेकेदार के पास काम गया है, वह कम लागत के साथ ही कमीशन देने के बाद पार्कों को कैसे संवारेगा? यह सवाल अभी से खड़े होने लगे हैं।
नगर निगम को पंद्रह वित्त आयोग से मिले 34 करोड़ की लागत से शहर के पार्कों को संवारना है। कुल 706 पार्कों को इसमे शामिल किया गया था। इसमे सिविल कार्य के साथ ही बारह करोड़ उद्यान से जुड़े कार्य कराए जाने हैं।
इसलिए बदरंग हो जाते हैं नए काम अब ठेकेदारों और अभियंताओं का कौन सा तंत्र है कि कम लागत में काम करने को तैयार हो जाते हैं। इसके पीछे एक खेल यह भी सामने आया कि अधिक लागत का आगणन तैयार कर देते हैं। हालांकि इसका परीक्षण करने के लिए एक अभियंता को जिम्मा दिया गया है, लेकिन उसका भी कमीशन तय हैं। सीट पर बैठकर ही जोन के अभियंता भी गुणवत्ता का परीक्षण कर लेते हैं और फिर फाइल भुगतान के लिए ऊपर चली जाती हैं। पार्षद भी घटिया काम का विरोध नहीं करते हैं, लिहाजा कम समय में ही सड़क से पार्क तक उजड़े नजर आते हैं।
नगर निगम के मुख्य अभियंता (सिविल) महेश वर्मा ने बताया कि मुख्य अभियंता महेश वर्मा का कहना है कि काम चालू होने से पहले की फोटो कराई जाती है और बाद में कई चरण में जांच के बाद भी किसी काम का भुगतान होता हैं। ऐसे में गुणवत्ता का पूरा ध्यान दिया जाता है।