लखनऊ विकास प्राधिकरण के ट्रांसपोर्ट नगर में दलालों व निवेशकर्ताओं ने मिलीभगत करके दस साल बाद भी न तो भूखंड पर निर्माण करवाया और न ही नक्शा पास कराया। उल्टे दस साल बाद लेवी जमा करके लविप्रा उपाध्यक्ष के आदेश की अनदेखी की।
लखनऊ, लखनऊ विकास प्राधिकरण (लविप्रा) के पचास भूखंड ऐसे निकले हैं, जिनमें नियमों को दरकिनार कर लेवी जमा की गई। दलालों व निवेशकों ने बाबुओं की मिली भगत से इसका फायदा उठाया। नियमानुसार अगर आप अपने भूखंड का निर्माण नहीं कराते तो लविप्रा उपाध्यक्ष लेवी जमा कराने के बाद कुछ सालों की छूट देता है। यह छूट टुकड़ों में अधिकतम दस साल हो सकती है। ट्रांसपोर्ट नगर में दलालों व निवेशकर्ताओं ने मिलीभगत करके दस साल बाद भी न तो भूखंड पर निर्माण करवाया और न ही नक्शा पास कराया। उल्टे दस साल बाद लेवी जमा करके लविप्रा उपाध्यक्ष के आदेश की अनदेखी की। इसमें पूरी तरह से भूमिका निभाई ट्रांसपोर्ट नगर योजना देख रहे पूर्व के बाबुओं ने। अब ऐसे बाबुओं की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
लविप्रा के अपर सचिव ज्ञानेंद्र वर्मा ने बताया कि चार सौ भूखंड ऐसे हैं, जिन्होंने निर्माण नहीं कराया है और लेवी जमा नहीं की है। ऐसे आवंटियों को पत्र भेजकर जवाब मांगा गया है। इनमें दर्जनों आवंटियों ने जवाब भी भेज दिए हैं। वहीं पचास आवंटी ऐसे हैं, जिन्होंने समय बीतने के बाद लेवी जमा की। कुछ ने पूर्व उपाध्यक्ष से संस्तुति कराई तो कुछ ने बिना संस्तुति के बैंक में जाकर लेवी जमा कर दी। यही नहीं कास्टिंग व योजना देख रहे बाबुओं की कार्यप्रणाली भी सामने आ रही है। ऐसी फाइलों को निकलवाने का काम लविप्रा ने शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि अगर चार सौ भूखंडों का आवंटन निरस्त होता है तो ऐसे पचास भूखंडों पर भी गाज गिरनी तय है, जो समझ रहे हैं कि लेवी जमा करके सब कुछ ठीक कर लिया।
क्या है लेवी: लेवी एक शुल्क है जो एलडीए खाली भूखंडों पर निर्माण पर लेता है नियमानुसार लीज पर लिए जाने वाले भूखंड पर लेवी लेने का प्राविधान है, जैसे ट्रासपोर्ट नगर योजना, गोमतीनगर फेस वन योजना में लेवी ली जाती है, लविप्रा उपाध्यक्ष को सात साल तक टुकड़ों में लेवी बढाने का अधिकार है। निर्माण न करने पर एलडीए लेवी में भूखंड की कीमत का एक प्रतिशत प्रति वर्ष आवंटी से लिया जाता है। 10 साल तक इंतजार करते है इसके बाद पत्राचार करके भूखंड को निरस्त करने का निर्णय लेते हैं।