देश में आगामी राष्ट्रपति चुनाव देखते हुए भाजपा ऐसे उम्मीदवार की तलाश में है जिसे रायसीना हिल भेजा जा सके। हालांकि भाजपा के लिए यह बेहद चुनौतीपूर्ण मुकाबला होगा क्योंकि सभी क्षेत्रीय दल उसके टकराव की तैयारी कर रहे हैं।
नई दिल्ली, देश में आगामी राष्ट्रपति चुनाव देखते हुए भाजपा ऐसे उम्मीदवार की तलाश में है जिसे रायसीना हिल भेजा जा सके। हालांकि भाजपा के लिए यह बेहद चुनौतीपूर्ण मुकाबला होगा क्योंकि सभी क्षेत्रीय दल उसके टकराव की तैयारी कर रहे हैं। गौर करने वाली बात है कि अब तक सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से इस चुनाव को लेकर कोई गंभीर कदम नहीं उठाया गया है। सत्ता पक्ष संसद में अपनी संख्या बल के कारण चुनाव जीतने के प्रति आश्वस्त नजर आ रहा है तो विपक्ष में भी आंतरिक मंथन जारी है।
हालांकि विपक्षी एकजुटता भाजपा के समीकरणों को बिगाड़ सकती है। बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी अटल बिहारी वाजपेयी की राह पर चलेंगे और किसी ऐसे उम्मीदवार को उतारने को तरजीह देंगे जिससे विपक्षी एकजुटता की चुनौती से पार पाया जा सके। सनद रहे साल 2002 एपीजे अब्दुल कलाम की उम्मीदवारी ने विपक्षी खेमे में विभाजन पैदा कर दिया था। हालांकि इस बार चीजें थोड़ी अलग हैं क्योंकि भाजपा वाजपेयी युग की तुलना में अब कहीं ज्यादा मजबूत है।
मौजूदा वक्त में लोकसभा में भाजपा के 300 से अधिक सांसद और राज्य सभा में लगभग 100 सांसद हैं। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के मसले पर सत्ता पक्ष के सूत्र चुप्पी साधे हुए हैं। हालांकि इस मसले पर किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए आरएसएस नेताओं के साथ कई दौर की बैठक हो चुकी है। सनद रहे कि वाजपेयी के बाद यूपीए ने भी राष्ट्रपति चुनावों में प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी को उतार कर ऐसी पार्टियों से समर्थन हासिल किया था जो उस समय एनडीए का हिस्सा थीं।
साल 2002 के राष्ट्रपति चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने एपीजे अब्दुल कलाम को उतार कर समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दलों का समर्थन भी हासिल किया था। वाजपेयी ने कलाम को राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित करने के लिए वामपंथी संगठनों को छोड़कर कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों को भी सफलतापूर्वक एकजुट किया था। एपीजे अब्दुल कलाम को करीब 90 फीसद वोट मिले थे। टीएमसी, शिवसेना, बीजेडी ने भी कलाम का समर्थन किया था और तमिलनाडु कनेक्शन के कारण द्रमुक (DMK) और अन्नाद्रमुक (AIADMK) भी साथ आ गए थे।