शर्मनाक: निजी अस्पतालों में बेचे जा रहे नेपाली मरीज, एक पर 50 हजार रुपये कमीशन कमा रहा गिरोह

नेपाल से लेकर लखनऊ तक सक्रिय सिंडिकेट सरकारी संस्थानों के बजाय चुनिंदा पांच प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों को भर्ती करा रहा है। इन निजी अस्पतालों में लाखों का बिल बनाकर मरीजों से वसूली की जाती है। मामले में शिकायत के बाद जांच के आदेश दिए गए हैं।

केस 1: नेपाल के धनगढ़ी निवासी 24 वर्षीय ड्राइवर विनोद को सड़क हादसे में गले की हड्डी में चोट लगी। वहां के अस्पताल में इलाज के बाद उसे लखनऊ के केजीएमयू में रेफर कर दिया गया। इसी दौरान सिंडिकेट ने विनोद को एंबुलेंस से केजीएमयू ले जाने के बजाय चिनहट के एक निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया। यहां चार दिन में ढाई लाख का बिल बना दिया गया। भुगतान न करने पर मरीज को बंधक बनाया गया। आखिर में पुलिस ने उसे छुड़वाया।

केस 2 : आंतें फटने के बाद नेपाल के 40 वर्षीय प्रदीप को लोहिया संस्थान रेफर किया गया। हालांकि, नेपाल बार्डर पर एंबुलेंस चालक ने उनके परिजन को समझा दिया कि सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं मिलता है। मरीज की जान चली जाएगी। इसके बाद मरीज को गोमतीनगर के कठौता स्थित अस्पताल में भर्ती करा दिया। यहां ऑपरेशन के नाम पर तीन लाख का बिल बना। भुगतान न होने पर मरीज को बंधक बना लिया गया। रकम मिलने पर ही उसे छोड़ा गया।

नेपाल से लेकर राजधानी तक सक्रिय सिंडिकेट के कारनामों के ये मामले महज बानगी भर हैं। यह संगठित गिरोह नेपाल से लखनऊ रेफर होने वाले मरीजों को सरकारी संस्थानों के बजाय चुनिंदा पांच निजी अस्पतालों में भर्ती कराता है। इसके बदले इन्हें मोटा कमीशन मिलता है। काफी दिनों से चल रहे इस खेल को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता ममता ने बुधवार को मुख्यमंत्री व पुलिस कमिश्नर से शिकायत की। इस पर सीएम कार्यालय से जांच के आदेश दिए गए हैं, जिससे हड़कंप मच गया है।

शिकायतकर्ता का कहना है कि गोमतीनगर में कठौता स्थित निजी अस्पताल, चौक, खदरा, पॉलीटेक्निक और अयोध्या रोड स्थित एक निजी अस्पताल में सिर्फ नेपाली मरीज भर्ती किए जाने का खेल चल रहा है। इन अस्पतालों में नेपाली मरीजों की तादाद बाकी से अधिक है। इनके इलाज के नाम पर लाखों का बिल बनाया जाता है। भुगतान न मिलने पर ये अस्पताल मरीज को बंधक बनाने तक से नहीं चूकते और पैसा मिलने पर ही छोड़ते हैं।
रोजाना दो से तीन मरीज होते हैं नेपाल से रेफर

नेपाल से रोजाना दो से तीन एंबुलेंस राजधानी के सरकारी संस्थानों में भर्ती कराने के लिए मरीज लेकर निकलती हैं। हालांकि, इनमें से एक भी यहां भर्ती नहीं हो पाता है। सभी मरीज इन पांच निजी अस्पतालों के जाल में फंसा लिए जाते हैं। यहां इलाज के नाम पर इनसे मोटी कमाई की जाती है। बिल न चुकाने पर परिजनों को नेपाल वापस भेजकर रकम लेकर आने के बाद ही मरीज को छोड़ा जाता है।

एक नेपाली मरीज पर 50 हजार तक का कमीशन
राजधानी का कोई मरीज इन अस्पतालों में लाने पर एंबुलेंसवालों को 20 हजार रुपये मिलते हैं। वहीं, नेपाली मरीज लाने पर 50 हजार रुपये या मरीज के इलाज में खर्च रकम का 30 प्रतिशत संगठित गिरोह को मिलता है। यह रकम एंबुलेंस चालक के अलावा गिरोह के लोगों में बंटती है।

पुलिस की मदद से कसेंगे नकेल
सीएमओ डॉ. मनोज अग्रवाल का कहना है कि मामले की जांच के आदेश दिए गए हैं। इस पर नकेल कसने के लिए पुलिस की भी मदद ली जाएगी।

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