नेपाल के बाद श्रीलंका में चीन ने अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए दखलंदाजी शुरू कर दी है। श्रीलंका में हाल ही में दो सरकारी परियोजनाओं के साइन बोर्डो पर चीनी भाषा मंदारिन को जगह दी गई है। इससे सियासी बवाल मच गया है…
नई दिल्ली, श्रीलंका में हाल ही में दो सरकारी परियोजनाओं के साइन बोर्डो पर वहां की आधिकारिक और दक्षिण भारतीय भाषा तमिल को हटाकर चीनी भाषा मंदारिन को जगह दी गई है। नेपाल के बाद श्रीलंका में भी चीन ने अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए सांस्कृतिक दखलंदाजी शुरू कर दी है। इसी हफ्ते श्रीलंकाई अटॉर्नी जनरल दप्पुला दे लिवेरा ने सिंघला (श्रीलंका की मूल भाषा), मंदारिन और अंग्रेजी भाषाओं वाले साइन बोर्ड का अनावरण किया। इससे श्रीलंका में दो तरह के विवाद खड़े हो गए…
पहला यह कि इन साइन बोर्डों पर श्रीलंका की आधिकारिक भाषा तमिल क्यों नहीं है और दूसरा विवाद यह उठा कि इस पर चीनी भाषा मंदारिन को क्यों शामिल किया गया है। यह श्रीलंका की तीन आधिकारिक भाषाओं (सिंघला, तमिल और अंग्रेजी) की नीति के विरुद्ध है। यह विवाद तब और बड़ा हो गया, जब चीन ने अटॉर्नी जनरल डिर्पाटमेंट को एक स्मार्ट लाइब्रेरी भेंट की। इस घटनाक्रम पर इंटरनेट मीडिया पर तरह-तरह की चर्चाएं सामने आ रही हैं।
कड़ी आलोचनाओं के बीच इस साइन बोर्ड को हटा लिया गया। इस विषय में अटॉर्नी जनरल कार्यालय ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है। हालांकि, डैमेज कंट्रोल के लिए चीनी दूतावास ने ट्वीट करके कहा, ‘हमने जेवी बिल्डिंग साइट के साइन बोर्ड पर त्रिभाषायी नियमों का पालन नहीं होने की बात देखी थी। हम श्रीलंका की तीनों आधिकारिक भाषाओं का आदर करते हैं। साथ ही चीनी कंपनियों से आग्रह करते हैं कि वह इन नियमों का पालन करें।’
चीनी दूतावास ने इस ट्वीट के साथ कई और साइन बोर्ड की तस्वीरें साझा कीं, जिसमें तमिल भाषा भी शामिल थी। यह विवाद अभी थमा भी नहीं था कि पिछले ही हफ्ते ऐसी ही एक और घटना हुई। बंदरगाह शहर कोलंबो में सेंट्रल पार्क का निर्माण कर रही चीनी कंपनी ने वहां पर तमिल भाषा की जगह मंदारिन को जगह दी। जब यह मामला तमिल समूहों और इंटरनेट मीडिया में चर्चित हो गया तो कोलंबो प्रशासन ने कहा कि कोई पुराने साइन बोर्ड की तस्वीर जारी की गई है।