हरदोई में भाजपा के सामने पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती,

पिछले दो विधानसभा चुनाव के नतीजे ये बताने के लिए काफी है कि हरदोई किस तरह किसी पर मेहरबान होती है और किस तरह उसे विस्मृत कर देती है। जब जिस पर मेहरबान हुई उसे छप्पर फाड़ कर दिया।

 

हरदोई ।  हरदोई में भाजपा पुरजोर कोशिश में है कि वह 2017 के 7-1 के परिणाम को इस बार 8-0 में बदल दें। मतलब समाजवादी पार्टी का सूपड़ा साफ। दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी 2012 के नतीजे को दुहराने की कोशिश में है जब भाजपा रिंग के भीतर भी न आ सकी। सपा ने बसपा के साथ 6-2 का गेम खेला था। 2017 के चुनाव के बाद सपा की बड़ी उम्मीद नरेश अग्रवाल ने भी पुत्र समेत भाजपाई कैंप में दाखिला ले लिया। समाजवादी पार्टी एकबार फिर अपनी पुरानी ताकत हासिल करने को ऐड़ी-चोटी एक किए हुए है। हरदोई से अजय श्रीवास्तव की रिपोर्ट-

पिछले दो विधानसभा चुनाव के नतीजे ये बताने के लिए काफी है कि हरदोई किस तरह किसी पर मेहरबान होती है और किस तरह उसे विस्मृत कर देती है। जब जिस पर मेहरबान हुई उसे छप्पर फाड़ कर दिया। ये तो रही हरदोई की प्रकृति जो 2022 में किस करवट बैठेगी उस पर फिलहाल कुछ भी कहना मुश्किल होगा। सभी प्रमुख दलों के दावेदार पूरी मजबूती से जनता की अदालत में अपनी पैरोकारी करते दिख जा रहे हैं।

संडीला सीट पर चुनावी मिठास यहां के प्रसिद्ध लड्डू की तरह ही है। चौराहे के एक होटल के बाहर पतीले के एक चावल की तरह ही चुनावी हवा का भी अहसास हो जाता है। कान लगाकर सुनने पर स्पष्ट रूप से दो खेमे नजर आते हैैं। कानून व्यवस्था का मुद्दा एक पक्ष है तो दूसरे के पास बेसहारा पशुओं का हथियार। यह बहस भाजपा बनाम सपा का संदेश तो देती है लेकिन एक तीसरा खेमा कुछ सीटों पर बसपा की तरफदारी भी करता है, हालांकि उसके सुर उतने दमदार नहीं हैैं। रामपाल सिंह की बातों से लगा कि वह योगी सरकार की कानून व्यवस्था और अन्य योजनाओं से सहमत हैं लेकिन रामअवतार पशुओं के उत्पात से बर्बाद हो रही खेती का मुद्दा उठाते हैं।

 

संडीला सीट पर भाजपा ने मौजूदा विधायक राजकुमार अग्रवाल के बजाय अलका अर्कवंशी को मैदान में उतारा है। सपा गठबंधन ने सुभासपा के सुनील अर्कवंशी को मौका दिया है। मुस्लिम मतों की अधिक संख्या होने के कारण कांग्रेस ने हनीफ और बसपा ने पूर्व मंत्री अब्दुल मन्नान को उतारा है। ऐसे में यहां मतों का ध्रुवीकरण अहम हो सकता है। बालामऊ विधानसभा क्षेत्र में प्रवेश करते ही चुनावी माहौल दिखने लगता है। यहां पेट्रोल पंप से आगे छप्पर वाले होटल के बाहर रामचंद्र मायावती की तारीफ करने से नहीं चूकते हैं तो राकेश तिवारी कहते हैं कि योगी सरकार में माफिया पानी पीते नजर आए और हर किसी तक सरकारी योजनाएं पहुंची हैं। यहां भाजपा से रामपाल वर्मा उम्मीदवार हैैं जो पिछला चुनाव भी भाजपा से ही जीते थे। सपा ने रामबली वर्मा को मैदान में उतारा है। बसपा के तिलक चंद्र पासी और कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार उर्फ सुरेंद्र कालिया चुनाव को बहुकोणीय करने की कोशिश में है।

शहर में प्रवेश करते ही हरदोई सदर सीट पर रोचक मुकाबला होने के आसार हैैं। सपा छोड़कर भाजपा में आए नितिन अग्रवाल तीन बार यहां से विधायक चुने गए हैं। भाजपा ने पूर्व प्रत्याशी राजा बक्श सिंह का टिकट काटकर नितिन अग्रवाल को जिताऊ मानते हुए टिकट दिया है। सपा ने पूर्व विधायक अनिल वर्मा को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने क्षत्रिय कार्ड खेलते हुए आशीष सिंह तो बसपा ने ब्राह्मïण उम्मीदवार शोभित ऊर्फ सनी पाठक पर दांव लगाया है। लोग कहते हैैं कि मुकाबला कांटे का है, हालांकि नितिन को अपने पिता के प्रभाव का फायदा मिलेगा। भक्त प्रहलाद कुंड के समीप रामू गुप्ता कहते हैं कि योगी जी की कानून व्यवस्था के आगे सभी बातें गौण हैैं। पास में खड़े राकेश सिंह रामू की बात से सहमत नहीं दिखे। कहते हैं कि महंगाई रोकने में सरकार विफल रही है, इसका नुकसान भाजपा उठाएगी। किसान आंदोलन की क्षेत्र में कोई चर्चा तक नहीं करता। हालांकि नुमाइश चौराहा निवासी युवा किसान सहदेव किसानों को और सुविधाएं दिए जाने की हिमायत करते हैैं।

 

गोपामऊ सीट पर 2017 में भाजपा के टिकट से जीतने वाले श्याम प्रकाश एक बार फिर पार्टी के उम्मीदवार हैं। सपा ने पूर्व विधायक राजेश्वरी देवी को मैदान में उतारा है। राजेश्वरी ने 2012 में सपा के टिकट पर जीत हासिल की थी। बसपा ने सर्वेश तो कांग्रेस ने सुनीता देवी को मैदान में उतारा है। कांग्रेस की सुनीता महिला अधिकार, कानून व्यवस्था, किसानों की समस्या और बेरोजगारी पर भाजपा को घेर रही है। गोपामऊ में चर्चा कांग्रेस की भी दिखी। कांग्रेस की नीतियों की तारीफ करते हुए राम सजीवन कहते हैं कि अगर प्रियंका पहले राजनीति में आ जाती तो कोई दल नहीं दिखता। इस पर मधुर कृष्ण योगी सरकार की हिमायत करते हैैं कि योगी सरकार में तुष्टिकरण की राजनीति नहीं हो रही है।

 

माफिया किसी जाति व धर्म का हो, जेल में है। या फिर भगवान को प्यारा हो गया। बेसहारा पशुओं का मुद्दा राम अवध उठाते हैं। कहते हैं, जब खाने को नहीं होगा तो सुरक्षा का क्या करेंगे। सवायजपुर विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी माधवेंद्र प्रताप सिंह का मुकाबला सपा के पदमराग यादव से है। माधवेंद्र पिछला चुनाव भाजपा से ही जीते थे। बसपा के राहुल तिवारी की नजर बसपा के मतों के साथ ही ब्राह्मïण मतों पर भी है तो कांग्रेस से राजबर्धन सिंह मैदान में हैं। ग्रामीण इलाके की इस सीट पर वृंदावन चौराहे पर चुनावी चर्चा में भाजपा और सपा नाम ही सुनने को मिला।

शाहाबाद विधानसभा क्षेत्र में भाजपा से विधायक रजनी तिवारी मैदान में हैं, जो अलग-अलग सीटों से चुनाव जीत चुकी हैं और चौथी बार विधायक बनने के लिए मैदान में हैं। यहां भी भाजपा से सपा का मुख्य मुकाबला है। सपा ने आसिफ खां को मैदान में उतारा है तो बसपा प्रत्याशी अहिबरन लोधी और कांग्रेस उम्मीदवार डा.अजीमुस्सान अपनी-अपनी पूर्व सरकारों के कार्यों को बताकर जनता के बीच जा रहे हैं। मुद्दा विहीन सांडी विधानसभा क्षेत्र में जातीय आधार हावी दिख रहा है। 2017 में कमल को खिलाने वाले प्रभाष कुमार वर्मा फिर से मैदान में हैं तो हरदोई की पूर्व सांसद ऊषा वर्मा सपा की उम्मीदवार है।

वैसे तो इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच कड़ा मुकाबला है लेकिन बसपा से कमल वर्मा और कांग्रेस से आकांक्षा वर्मा दलीय और जातिगत आधार पर पूरी उम्मीद के साथ मैदान में हैं। बिलग्राम मल्लावा सीट पर चारों दल मजबूती के साथ मैदान में हैं। विधायक की दूसरी पारी खेलने जा रहे आशीष सिंह भाजपा उम्मीदवार हैं। 2012 में बसपा के टिकट पर जीत हासिल करने वाले ब्रजेश कुमार वर्मा सपा के उम्मीदवार हैं तो बसपा ने सतीश वर्मा पर दांव लगाया है। कांग्रेस ने जातिगत आधार पर सुभाष पाल को मैदान में उतारा है।

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