मुझे लगता है कि आप अपने और अपनी किताब के बीच अकेलेपन में रहते हैं। आप खुद अपना टाइमलाइन बनाते और लिखते हैं। आपको कोई नहीं बताता कि यह ऐसे होना चाहिए या वैसे होना चाहिए। उपन्यास लिखना और फिल्म बनाना दो अलग प्रक्रियाएं हैं।
मुंबई। ‘निल बट्टे सन्नाटा’, ‘बरेली की बर्फी’, ‘पंगा’ जैसी महिला केंद्रित फिल्मों के निर्देशन से फिल्म इंडस्ट्री में नाम कमा चुकीं अश्विनी अय्यर तिवारी का पहला उपन्यास ‘मैपिंग लव’ हाल ही में प्रकाशित हुआ। उपन्यास, आगामी वेब सीरीज व अन्य मुद्दों पर अश्विनी से स्मिता श्रीवास्तव की बातचीत के अंश…
उपन्यास ‘मैपिंग लव’ की शुरुआत कैसे हुई?
‘मैपिंग लव’ की शुरुआत तीन साल पहले हुई थी। पिछले साल जब कोरोना महामारी की शुरुआत हुई, तब मैंने सोचा कि अब तो घर पर ही रहना है तो इसे खत्म करती हूं। रोज लिखना शुरू किया। मैंने अनुभव किया कि अगर आप अनुशासित होकर काम करें तो वह काम पूरा हो जाता है।
आप काफी यात्राएं करती हैं और डायरी भी लिखती हैं। उन अनुभवों ने भी आपको यह उपन्यास लिखने में मदद की?
जब मैं ट्रैवल करती हूं तो डायरी नहीं लिखती। मगर हां, अपने किरदारों और स्टोरी से जुड़े रहने के लिए मैं जहां भी जाती थी, ‘मैंपिंग लव’ मेरे साथ होती थी। उसमें मैं अपनी कहानी को जारी रखती थी। घर आकर उसे लैपटाप पर लिखती थी।
इस कहानी पर फिल्म बनाने का भी इरादा है?
अगर किसी प्रोड्यूसर दोस्त को अच्छी लगी तो निश्चित रूप से निर्देशन करूंगी, पर इसका स्क्रीनप्ले नहीं लिखूंगी। दरअसल मैं उपन्यास के साथ अपने जुड़ाव के कारण स्क्रीनप्ले भी वैसे ही लिखूंगी जैसी किताब लिखी है, इसलिए इससे दूर रहूंगी। वैसे किताब लिखना और स्क्रीनप्ले लिखना दो अलग चीजें हैं। अभी तक इस पर फिल्म बनाने के बारे में मैंने सोचा नहीं है।
फिल्मों की कहानी गढ़ने की तुलना में फिक्शन उपन्यास लिखने में कितनी आजादी है?
मुझे लगता है कि आप अपने और अपनी किताब के बीच अकेलेपन में रहते हैं। आप खुद अपना टाइमलाइन बनाते और लिखते हैं। आपको कोई नहीं बताता कि यह ऐसे होना चाहिए या वैसे होना चाहिए। उपन्यास लिखना और फिल्म बनाना दो अलग प्रक्रियाएं हैं। किताब का दारोमदार पूरी तरह से आपके कंधों पर होता है। फिल्मों में बहुत सारे लोग होते हैं जो आपके पार्टनर होते हैं, वो सभी आपकी कहानी का भार लेते हैं।
‘लव मैपिंग’ में आज के युवाओं के लिए क्या खास है, जिसे वे पढें़गे और उससे कनेक्ट करेंगे?
मुझे ऐसा लगता है कि आज की पीढ़ी के लिए यह किताब अहम हो सकती है। रिश्ता बनाने और माफी देने, दोनों मामलों में। हम बहुत बार रिश्ते को हल्के में ले लेते हैं। कुछ चीजें भूलते नहीं हैं पर जब आप चीजों को भूल जाते हैं और रिश्ते को दोबारा शुरू करते हैं तो वह माफी होती है जो आपमें ठहराव लाती है। यही इस किताब से मिलने वाली सबसे बड़ी सीख होगी।
ओटीटी पर ‘फाडू़’ वेब शो लेकर आ रही हैं। क्या-क्या चीजें फाड़ने की तैयारी में हैं?
(मुस्कुराते हुए) ‘फाड़ू’ मेरे पिछले काम से बेहद अलग है। दरअसल, यह मेल सेंट्रिक कहानी है। यह अलग से इसलिए बता रही हूं, क्योंकि आजकल फीमेल सेंट्रिक बहुत हो रहा है। वेब सीरीज को निर्देशित करना फिल्म को निर्देशित करने से काफी अलग होता है। यह अलग तरह का चैलेंज होगा और मुझे चैलेंज अच्छे लगते हैं।
आप लिएंडर पेस और महेश भूपति पर डाक्यू ड्रामा और इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति और उनकी पत्नी सुधा मूर्ति पर फिल्म बना रही हैं। बायोपिक जानर भा रहा है?
हमारे आस-पास इतने सारे अच्छे लोग हैं जिन्होंने इतने अच्छे काम किए हैं कि वे हमारी प्रेरणा हैं। उनका सफर साझा करना बहुत जरूरी है। वैसे बायोग्राफी लिखना बहुत कठिन होता है, क्योंकि आपको उनकी कहानी पूरी दुनिया को बतानी होती है। हम ऐसी कहानियां बता रहे हैं जो भविष्य में देश और दुनिया के लोगों के लिए बहुत प्रेरणादायक होंगी। लिएंडर पेस और महेश भूपति की विंबलडन में जीत हो या नारायण मूर्ति व सुधा मूर्ति, वे हमारे लिए प्रेरणा हैं।
आप अपने पति नीतेश तिवारी के साथ पहली बार निर्देशन करने जा रही हैं…
हम दोनों को अपनी स्ट्रेंथ पता है। हम एक टीम के रूप में काम करते हैं। कोई बड़ा या छोटा नहीं है। जैसे अपने किसी अन्य सहयोगी के साथ काम करते हैं, हम वैसे ही साथ काम कर रहे हैं।