जम्मू-कश्मीर के दौरे के आखिरी दिन गृहमंत्री जब मंच पर बोलने के लिए आए तो उससे पहले ही उन्होंने वहां लगी बुलेटप्रूफ कांच को हटवाया। सुरक्षा कर्मियों द्वारा बुलेटप्रूफ कांच हटाए जाने के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों से सीधे बात करना चाहते हैं।
श्रीनगर, एजेंसी। जम्मू-कश्मीर के दौरे के आखिरी दिन सोमवार को श्रीनगर में विभिन्न विकास योजनाओं का उद्घाटन किया। उसके बाद गृहमंत्री जब मंच पर बोलने के लिए आए तो उससे पहले उन्होंने वहां लगी बुलेटप्रूफ कांच को हटवाया। सुरक्षा कर्मियों द्वारा बुलेटप्रूफ कांच हटाए जाने के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि वह जम्मू-कश्मीर के लोगों से सीधे बात करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि मुझे ताना मारा गया, निंदा की गई … आज मैं आपसे खुलकर बात करना चाहता हूं। यही वजह है कि यहां कोई बुलेटप्रूफ शील्ड या सुरक्षा नहीं है। फारूक साहब ने मुझे पाकिस्तान से बात करने का सुझाव दिया है, लेकिन मैं कश्मीर के युवाओं-यहां के लोगों से बात करूंगा। मुझे यहां के युवाओं से दोस्ती करनी है। कश्मीर के लोग मेरे अपने हैं, मुझे उनकी बात सुननी है।
गृहमंत्री ने कश्मीरियों को विश्वास दिलाया कि अब कोई भी ताकत यहां की शांति और जारी विकास योजनाओं को रोक नहीं सकती। उन्होंने पूरे दावे के साथ कहा कि अब आप लोग अपने दिन से डर को बाहर निकाल दें। कश्मीर की शांति और विकास को अब कोई नहीं बिगाड़ सकता। पीएम मोदी के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में विकास तेजी से बढ़ेगा। इस प्रक्रिया में किसी को भी खलल डालने नहीं दी जाएगी।
पांच अगस्त, 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में कर्फ्यू और इंटरनेट को बंद करने के बारे में जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा कि पांच अगस्त के बाद इंटरनेट बंद ना करते, अगर कर्फ्यू ना लगाते तो युवाओं की भावनाओं को भड़काकर जो स्थिति पैदा होती उसमें कौन मरता, कश्मीर का युवा मरता। हम नहीं चाहते थे कि कश्मीर के युवा पर किसी को गोली चलानी पड़े।
उन्होंने कहा कि पांच अगस्त 2019 को हमने एक फैसला लिया था उसके बाद मैं पहली बार आया हूं। मैं कहना चाहता हूं कि मोदी जी के नेतृत्व में जम्मू और कश्मीर, विशेषकर घाटी के अंदर विकास के नए युग की शुरुआत हुई है। मैं विश्वास दिलाता हूं कि 2024 तक इसका अंजाम भी बहुत खूबसूरत होगा।
फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि तीन परिवारों ने यहां 70 साल तक शासन किया है। ये समझे ना समझे हम ज़रूर समझते हैं कि एक बूढ़े बाप पर युवा बेटे के जनाज़े का बोझ कितना बड़ा होता है।