लखनऊ नगर निगम के कार्यालय में नगर आयुक्त ने औचक निरीक्षण किया तो 25 फीसद कर्मचारी ड्यूटी से गायब मिले। नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी ने संबंधित विभागों के प्रभारियों को कर्मचारियों के खिलाड़ी कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
लखनऊ, लेटलतीफ आना और फिर से सीट से गायब हो जाना। नगर निगम में आम बात हो गई है। दफ्तर आने के बाद अधिकारियों और कर्मचारियों के गायब हो जाने वे लोग परेशान होते हैं, जो अपनी समस्या लेकर कार्यालय पहुंचते हैं। दो दिन के अवकाश के बाद भी अधिकांश कर्मचारी शनिवार को दफ्तर समय पर नहीं पहुंचे। सुबह दस बजे नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी ने नगर निगम मुख्यालय के सभी कार्यालयों का औचक निरीक्षण किया तो ज्यादातर कर्मचारियों की सीटें खाली मिलीं। नगर आयुक्त ने सभी विभागों के उपस्थिति रजिस्टर को जब्त कर लिया।
नगर आयुक्त सबसे पहले कमरा नंबर 40 पहुंचे, जो अभियंत्रण विभाग का है और कई अन्य कार्यालय है। यहां सवा दस बजे कोई भी कर्मचारी नहीं आया था और सफाई कर्मचारी झाड़ू लगा रहे थे। यहां दरवाजे के बाहर ही कूड़ा पड़ा था। इसके बाद मुख्य अभियंता कार्यालय पहुंचे तो यहां भी अधिकांश कर्मचारी नहीं आए थे। लेखा विभाग में भी सन्नाटा पड़ा और एक दो कर्मचारी के अलावा कोई नजर नहीं आया। ऐसा ही हाल स्वास्थ्य विभाग का भी था। अपने साथ चल रहे अधिकारियों को नगर आयुक्त ने उपस्थिति रजिस्टर साथ में लेकर चलने को कहा।
दफ्तर में अधिकांश कर्मचारियों के गायब रहने पर नगर आयुक्त ने संबंधित विभाग प्रभारियों को भी फटकार लगाई और अनुपस्थित पाए गए कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। कई अधिकारी भी सीट पर नजर नहीं आए। नगर आयुक्त ने बताया कि यह शिकायतें मिल रहीं थी कि अधिकांश कर्मचारी समय पर नहीं आ रहे हैं। ऐसी ही शिकायतें अधिकारियों के बारे में भी मिली है। शनिवार को निरीक्षण में करीब पचीस फीसदी कर्मचारी कम मिले हैं, जिसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अब औचक निरीक्षण कर अधिकारियों और कर्मचारियों की ड्यूटी को चेक किया जाएगा। जोनल कार्यालयों में भी अधिकारियों की टीम को भेजकर ड्यूटी चेक कराई जाएगी।
मचा हड़कंपः दफ्तर आने के बाद बाहर चाय पी रहे कई कर्मचारियों को नगर आयुक्त के निरीक्षण की जानकारी मिली तो भगदड़ मच गई। कई कर्मचारी तो चाय छोड़कर अपनी सीट की तरफ भागते नजर आए।
अक्सर दोपहर में गायब हो जाते हैं कर्मचारीः कई कर्मचारी सुबह उपस्थिति दर्ज कराने के बाद सीट से गायब हो जाते हैं और दोपहर के बाद उनका पता ही नहीं चलता है। चार बजे के बाद तो अधिकांश दफ्तर में सन्नाटा ही दिखता है और काम कराने आए लोगों को बैरंग होना पड़ता है।