पीएम मोदी को मिला पहला लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार, कहा- दीदी के सुरों ने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मुंबई में मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार समारोह में हिस्सा लिया। पीएम मोदी को मुंबई में पहला लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार मिला। यह पुरस्‍कार प्रसिद्ध गायिका आशा भोंसले और मंगेशकर परिवार के अन्‍य सदस्‍यों ने प्रदान किया।

 

मुंबई । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मुंबई में मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार समारोह में हिस्सा लिया। पीएम मोदी को पहला लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार मिला। यह पुरस्‍कार प्रसिद्ध गायिका आशा भोंसले और मंगेशकर परिवार के अन्‍य सदस्‍यों ने प्रदान किया।

इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं संगीत जैसे गहन विषय का जानकार तो नहीं हूँ, लेकिन सांस्कृतिक बोध से मैं ये महसूस करता हूँ कि संगीत एक साधना भी है, और भावना भी। संगीत आपको राष्ट्रभक्ति और कर्तव्य बोध के शिखर तक पहुंचा सकता है। हम सब सौभाग्यशाली है कि हमने संगीत की इस शक्ति लता दीदी के रूप में साक्षात देखा है। हमें अपने आंखों से उनके दर्शन करने का सौभाग्य मिला है। मुझे गर्व होता है कि लता दीदी मेरी बड़ी बहन थीं। पीढ़ियों को प्रेम और भावना का उपहार देने वाली लता दीदी की तरफ से हमेशा एक बड़ी बहन जैसा अपार प्रेम मुझे मिला है। इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है।

उन्‍होंने कहा कि पुरस्कार जब लता दीदी जैसी बड़ी बहन के नाम से हो तो मेरे लिए उनके अपनत्व और प्यार का ही एक प्रतीक है। मैं इस पुरस्कार को सभी देशवासियों के लिए समर्पित करता हूं। जिस तरह लता दीदी जन-जन की थीं। उसी तरह से उनके नाम से मुझे दिया गया ये पुरस्कार जन-जन का है। लता जी ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’की मधुर प्रस्तुति की तरह थीं। आप देखिए, उन्होंने देश की 30 से ज्यादा भाषाओं में हजारों गीत गाये। हिन्दी हो मराठी, संस्कृत हो या दूसरी भारतीय भाषाएं, लताजी का स्वर वैसा ही हर भाषा में घुला हुआ है।

उन्‍होंने कहा कि संगीत के साथ साथ राष्ट्रभक्ति की जो चेतना लता दीदी के भीतर थी, उसका स्रोत उनके पिताजी ही थे। आजादी की लड़ाई के दौरान शिमला में ब्रिटिश वायसराय के कार्यक्रम में दीनानाथ जी ने वीर सावरकर का लिखा गीत गया था। उसकी थीम पर प्रदर्शन किया था। संस्कृति से लेकर आस्था तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक, लता जी के सुरों के पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। दुनिया में भीवो हमारे भारत की सांस्कृतिक राजदूत थीं।

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