विश्व बैंक ने कहा है कि कोरोना महामारी के प्रभावों से उबर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था पर रूस यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) की दोहरी मार पड़ी है। इसके चलते कई देशों में आर्थिक मंदी (Recession) की आशंका गहरा गई है।
लंदन । विश्व बैंक ने कहा है कि कोरोना महामारी के प्रभावों से उबर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था पर रूस यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) की दोहरी मार पड़ी है। इसके चलते कई देशों में आर्थिक मंदी (Recession) की आशंका गहरा गई है। समाचार एजेंसी आइएएनएस ने बीबीसी की रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि रूस यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) के प्रभावों से यूरोप ही नहीं पूर्वी एशिया भी प्रभावित होगा। विश्व बैंक ने चेताया है कि यूरोप और पूर्वी एशिया के कई देश आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकते हैं।
विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविस मैल्पस ने कहा कि पूरी दुनिया में ईंधन और खाद्य की कीमतों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। मुद्रास्फीतिजनित मंदी की संभावना और भी बढ़ गई है। मुद्रास्फीतिजनित मंदी यानी स्टैगफ्लेशन (stagflation) उस आर्थिक हालात को कहते हैं, जब आर्थिक विकास दर स्थिर रहती है लेकिन महंगाई और बेरोजगारी दर में तेजी बढ़ोतरी होती है। इससे निपटना किसी भी मुल्क के लिए बेहद मुश्किल होता है।
डेविड मैल्पस ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध, चीन में लाकडाउन और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में आ रही बाधा से मुद्रास्फीतिजनित मंदी का जोखिम बढ़ रहा है। ऐसे में कई देशों के लिए आर्थिक मंदी से बचना मुश्किल हो जाएगा। विश्व बैंक के प्रमुख का कहना है कि दुनिया के कई देशों में निवेश की कमी भी देखी जा रही है जिसके कारण विकास दर भी प्रभावित होगी। मौजूदा वक्त में कई देशों में महंगाई दर भी कई दशकों के उच्चतम स्तर पर है।
विश्व बैंक के सुप्रीमो ने कहा है कि वैश्विक खाद्य आपूर्ति के प्रभावित होने की आशंका है। ऐसे में महंगाई के लंबे समय तक लोगों को प्रभावित कर सकती है। विश्व बैंक प्रमुख ने आगे कहा कि यदि दुनिया वैश्विक आर्थिक मंदी की चपेट में आने से बच भी जाती है तो मुद्रास्फीतिजनित मंदी की मार से बचना मुश्किल है। यह कई साल तक कायम रह सकती है। यह स्थिति तब तक कायम रह सकती है जब तक आपूर्ति में आ रही बाधाओं का निस्तारण नहीं कर लिया जाता…
उल्लेखनीय है कि विश्व बैंक ने 2021 से 2024 के बीच वैश्विक आर्थिक विकास की दर को 2.7 फीसद पर बने रहने का अनुमान जताया है। यह 1976 से 1979 के बीच आई मंदी से भी खराब अनुमान है। दरअसल महंगाई पर काबू पाने के लिए केंद्रीय बैंक अपनी नीतिगत दरों में बदलाव करते हैं जिसका कई बार प्रतिकूल असर भी पड़ने लगता है। सन 1970 में महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों में इतनी अधिक बढ़ोतरी कर दी गई थी कि साल 1982 तक जाते जाते वैश्विक आर्थिक मंदी के हालात पैदा हो गए थे।