पीएम मोदी ने अपने संबोधन में राम से माफी मांगी। साथ ही उन्होंने संविधान का भी जिक्र किया। इन बातों के क्या राजनीतिक मायने हो सकते हैं? “मैं आज प्रभु श्री राम से क्षमा याचना भी करता हूं। हमारे पुरुषार्थ, त्याग, तपस्या में कुछ तो कमी रह गई होगी कि हम इतनी सदियों तक यह कार्य कर नहीं पाए।
अयोध्या ; प्राण प्रतिष्ठा के बाद पीएम मोदी ने वहां मौजूद जनसमुदाय को संबोधित किया। भावुक और भरे हुए गले से शुरू हुआ यह संबोधन धर्म, समाज और राजनीति के पहलूओं को टटोलता रहा। मोदी ने अपनी बात में भगवान राम से माफी मांगी। उन्होंने कहा “मैं आज प्रभु श्री राम से क्षमा याचना भी करता हूं। हमारे पुरुषार्थ, त्याग, तपस्या में कुछ तो कमी रह गई होगी कि हम इतनी सदियों तक यह कार्य कर नहीं पाए। आज वह कमी पूरी हुई है। मुझे विश्वास है कि प्रभु श्री राम आज हमें अवश्य क्षमा करेंगे” उनकी इस बात को इस रुप में देखा जा सकता है कि वह राम मंदिर के निर्माण में आई बाधाओं को नए सिरे रेखांकित करना चाह रहे हैं।
वह इसे एक गलती साबित करना चाह रहे हैं जाहिर है कि यह गलती उनके पाले में नहीं विपक्ष के पाले में जाएगी। पीएम मोदी ने यहां संविधान का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान की पहली प्रति में राम विराजमान है। बावजूद इसके राम को अपनी जगह बनाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद करते हुए कहा कि न्याय पालिका ने न्याय की लाज रख ली। संविधान में राम का जिक्र होना और फिर भी राम मंदिर ना बन पाना दोनों बातों को जोड़कर उन्होंने एक संकेत दिया है। यह संकेत बदलाव का भी हो सकता है
रामलला अब टेंट में नहीं रहेंगे। वो भव्य मंदिर में रहेंगे
अपने उद्बोधन में मोदी ने कहा कि 22 जनवरी 2024 का सूरज एक आभा लेकर आया है। यह तारीख नहीं, एक कालचक्र का उदगम है। हमें सदियों के धैर्य की धरोहर मिली है। आज हमें श्रीराम का मंदिर मिला है। गुलामी की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हुआ राष्ट्र ऐसे ही नए इतिहास का सृजन करता है। आज से हजार साल बाद इस तारीख की चर्चा करेंगे। ये राम कृपा है कि हम सब इस पल को जी रहे हैं। इसे घटित होते देख रहे हैं। ये समय सामान्य समय नहीं है। यह इसलिए क्योंकि रामलला अब टेंट में नहीं भव्य मंदिर में रहेंगे।