लखनऊ माल के सरकारी अस्पताल से सिविल ले जाया गया। सिविल से लोहिया अस्पताल रेफर नहीं मिला इलाज। साउथ सिटी स्थित एक निजी अस्पताल में जगह मिल सकी। जहां पहुंचते ही पचास हजार रुपये ले लिए गए।
लखनऊ , सरकारी अस्पताल में सामान्य मरीजों को भी बेड पाने में कभी-कभी एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी बेड नहीं मिल रहा है। ऐसा ही एक मामला राजधानी के आशियाना के सेक्टर-एम से समाने आया है। यहां के निवासी अशोक कुमार रविवार सुबह छह बजे अपने बेटे के साथ माल से लखनऊ की ओर आ रहे थे। उसी वक्त अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी। स्थानीय लोगों दोनों को माल स्थित सरकारी अस्पताल ले गए। वहां डॉक्टरों ने मरीज को हजरतगंज स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल अस्पताल ) ले जाने को कहा। वहां इलाज सही मिलेगा।
तीमारदार आननफानन दोनों घायलों को लेकर सिविल पहुंचे, यहां भी घंटों तक मशक्कत करते रहे, फिर यहां से राम मनोहर लोहिया दोपहर में भेज दिया गया। यहां भी स्ट्रेचर से मरीज अशोक को लिए उसका साला इधर से उधर घूमता रहा, लेकिन अस्पताल में दाखिला नहीं हो सका। अंत में साउथ सिटी स्थित एक निजी अस्पताल में जगह मिल सकी।
पीड़ितों ने फोन पर बताया कि लोहिया पहुंचने के बाद उम्मीद थी कि इलाज शुरू हो जाएगा। तमाम मिन्नतों के बाद भी कभी डॉक्टर न होने की बात कही गई तो कभी बेड फुल होने की बात। अशोक ने बताया कि मेरा हाथ टूट गया था और बेटे तरुण का पैर टूटने के साथ ही कई जगह चोटें लगी थी। पेशे से नाई का काम करने वाले अशोक के रिश्तेदार ने बताया कि शाम चार बजे तक कोई व्यवस्था नहीं बनी तो रिश्तेदारों ने तेलीबाग के साउथ सिटी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां पहुंचते ही पचास हजार रुपये ले लिए गए। अभी और पैसों का इंतजाम करने का इशारा भी कर दिया गया है। अगर यही इलाज सरकारी में मिलता तो रिश्तेदारों से पैसे न मांगने पड़ते।