निश्शुल्क व अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों को 25 प्रतिशत सीटों पर दुर्लभ व अलाभित समूहों के बच्चों को प्रवेश देने के निर्देश हैं। निजी स्कूलों को सरकार शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए प्रति बच्चा 450 रुपए प्रतिमाह की दर से अनुदान भी देती है।
लखनऊ, प्रदेश के गरीब बच्चों को कांवेंट व अन्य निजी स्कूलों में प्रवेश देने में कालेज संचालक आनाकानी कर रहे हैं। शासन को इस संबंध में शिकायतें मिलने पर शिक्षा निदेशक बेसिक ने सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को कड़ा पत्र जारी किया है, निर्देश है कि नियमों का उल्लंघन करने वालों पर मान्यता प्रत्याहरण की कार्रवाई की जा सकती है।
निश्शुल्क व अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों को 25 प्रतिशत सीटों पर दुर्लभ व अलाभित समूहों के बच्चों को प्रवेश देने के निर्देश हैं। इसके लिए निजी स्कूलों को सरकार शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए प्रति बच्चा 450 रुपए प्रतिमाह की दर से अनुदान भी देती है। यदि बच्चे की पढ़ाई पर आने वाला खर्च 450 रुपये से कम होगा तो स्कूल को वास्तविक खर्च के भुगतान की व्यवस्था है। अभिभावकों को निजी स्कूल के हिसाब से किताब-कापियों और ड्रेस की व्यवस्था करने के लिए सरकार अलग से इंतजाम करती है।
आरटीई 2009 अधिनियम के तहत इसके लिए आनलाइन आवेदन लेकर बच्चों को लाटरी के माध्यम से स्कूल भी आवंटित हुए, लेकिन निजी स्कूल संचालक बच्चों को प्रवेश देने में रुचि नहीं ले रहे हैं। इसकी शिकायतें शासन व विभाग को मिली है, इसे नियमों का उल्लंघन माना गया है। शिक्षा निदेशक की ओर से अपर निदेशक ललिता प्रदीप ने बीएसए को भेजे पत्र में लिखा है कि आइसीएसई व सीबीएसई आदि बोर्ड से कक्षा नौ से 12वीं तक की मान्यता पाने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग से एनओसी की ली जाती है। मान्यता पत्र में इन शर्तों का उल्लेख है कि उन्हें शासन व विभाग के निर्देशों का अनुपालन करना होगा, अन्यथा मान्यता प्रत्याहरण की कार्यवाही की जा सकती है। स्कूलों को गरीब बच्चों को प्रवेश दिलाना बाध्यकारी होगा।
ये शिकायतें मिली
- विभाग की ओर से बच्चों की चयन सूची उपलब्ध कराने के बाद भी विद्यालय ने प्रवेश नहीं दिया।
- चयनित बच्चों के अभिभावकों से अनावश्यक अभिलेख मांगे गए और उनका सत्यापन खुद किया।
- जिन बच्चों को दाखिला मिला उनसे समय-समय पर वसूली करना और उसकी रसीद न देना।
- कुछ स्कूलों ने बच्चों का नाम काट दिया और अभिभावक व बच्चों को परेशान किया जा रहा है।