भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने की बात कहकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने फिर एक बार इस पर बहस शुरू करने का काम किया है। हकीकत ये है कि इसको लेकर कई देशों ने अपनी सहमति दी है लेकिन हुआ कुछ नहीं।
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। संयुक्त राष्ट्र की आम सभा का का 77वां सत्र शुरू हो चुका है। इस सत्र के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट की दावेदारी का समर्थन किया है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इस तरह के बयान कई देशों से लगभग हर बार सुनने को आते हैं। इसके बाद भी भारत को आज तक इसका स्थायी सदस्य नहीं बनाया जा सका है। इसकी दो सबसे बड़ी वजह हैंं। इसकी पहली बड़ी वजह है चीन तो दूसरी वजह है सीटों में बदलाव के लिए यूएन चार्टर में संशोधन।
चीन बना है सबसे बड़ा रोड़ा चीन भारत की इस दावेदारी में ये कहकर वीटो का इस्तेमाल करता आया है कि यदि भारत इसका दावेदार हो सकता है तो फिर पाकिस्तान को ही क्यों पीछे छोड़ा जाए। आपको जानकर हैरानी होगी कि जो चीन यूएनएससी के में भारत की स्थायी सीट की दावेदारी में रोड़ा बना हुआ है कभी उसको इस परिषद का स्थायी सदस्य बनाने में भारत ने ही अहम भूमिका निभाई थी।
पंडित नेहरू ने की बड़ी गलती भाजपा की सरकार के पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी इसको लेकर एक ट्वीट 14 मार्च 2019 को किया था, जिसमें कहा गया था कि कश्मीर और चीन को लेकर लगातार एक ही इंसान ने बड़ी गलतियां की थीं। उन्होंने यहां तक लिखा था कि पंडित नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में भी इस बात का समर्थन किया था कि चीन को सुरक्षा परिषद की सदस्या मिलनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो चीन के साथ ये नाइंसाफी होगी। जेटली ने इस दौरान पंडित नेहरू के अगस्त 1955 में लिखे पत्र का हवाला दिया था।
सुरक्षा परिषद का ढांचागौरतलब है कि सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में 5 स्थाई सदस्य होते हैं। चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका इसके स्थायी सदस्य हैं। इसके अलावा परिषद की 10 अस्थाई सीटों के लिये हर दो वर्षों में चुनाव होता है। इस तरह से ये सदस्य हर दो वर्ष में बदलते रहते हैं। भारत की नवंबर 2022 में सदस्यता खत्म हो जाएगी। बता दें कि सुरक्षा परिषद विश्व की शांति और सुरक्षा की मुख्य जिम्मेदारी होती है। 1965 तक UNSC में कुल 11 सदस्य होते थे। 1965 में यूएन चार्टर में बदलाव कर इनकी संख्या 15 की गई थी।