अफगानिस्तान में अमेरिकियों के साथ काम करने वाले अफगान दुभाषियों और अन्य लोगों को निकालने वाली पहली उड़ान शुक्रवार तड़के वाशिंगटन के डलेस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरी। अमेरिकी सरकार के एक आंतरिक दस्तावेज और एक वाणिज्यिक फ्लाइट ट्रैकिंग सर्विस से मिली है।
वाशिंगटन, एजेंसी। अफगानिस्तान में अमेरिकियों के साथ काम करने वाले अफगान दुभाषियों और अन्य लोगों को निकालने वाली पहली उड़ान शुक्रवार तड़के वाशिंगटन के डलेस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरी। इसी के साथ शुक्रवार को कुल 200 अफगानों को ‘एयरलिफ्ट’ करके नया जीवन शुरू करने के लिए अमेरिका लाया गया। यह जानकारी अमेरिकी सरकार के एक आंतरिक दस्तावेज और एक वाणिज्यिक फ्लाइट ट्रैकिंग सर्विस से मिली है।
रायटर के मुताबिक अमेरिका के लिए काम करने वाले अफगानों को विशेष आव्रजन वीजा (एसआइवी) मुहैया कराया जा रहा है। इसके तहत अफगानी परिवारों को अमेरिका में बसाया जा रहा है। ‘आपरेशन एलाइज रेफ्यूज’ के तहत 50 हजार या उससे अधिक लोगों को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकाला जाएगा। इन्हें अमेरिका या किसी तीसरे देश में सुरक्षित प्रश्रय दिया जाएगा। अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ सालों की सैन्य कार्रवाई में अमेरिकी सैनिकों और नागरिकों के साथ काम कर चुके पूर्व अनुवादकों और अन्य लोगों को अब अफगानिस्तान से सुरक्षित बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से रवाना होने के बाद तालिबान के प्रतिशोध की प्रबल आशंका है।
इसीलिए पूर्व अनुवादकों और अन्य लोगों को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकालने के लिए निकासी उड़ानें शुरू कर दी गई हैं। इसी के तहत पहली निकासी उड़ान वाशिंगटन के डलेस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सुबह 57 बच्चों और 15 शिशुओं सहित 221 अफगानों को ले जाने वाला एक विमान लैंड हुआ। दुभाषियों के साथ उनके परिवार के सदस्य भी वापस लौट रहे हैं। अमेरिकी सरकार इस बात से भी सशंकित है कि आने वाले हफ्तों में पिछले अमेरिकी सुरक्षा बलों के अफगानिस्तान को छोड़ने के बाद अफगानिस्तानी सरकार और सेना उनके साथ कैसा सुलूक करेगी।
अतंरराष्ट्रीय एवं अमेरिकी मीडिया की रिपोर्टों को देखने पर जानकारी मिलती है कि अफगानिस्तान में तालिबान एक बार फिर से अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। इसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि वहां प्रोविंशियल सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट समेत कुल 421 जिलों में से 320 पर तालिबान हावी हो चुका है। 75 जिलों में और 160 से ज्यादा जिलों के ग्रामीण इलाकों में कब्जा कर लिया है। हालांकि, कोई बड़ी हिंसात्मक घटना न होने से अभी अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इसे लेकर सन्नाटा बना हुआ है। तालिबान के खात्मे के उद्देश्य के साथ शुरू हुए इस जंग में अमेरिका ने 20 वर्षों के दौरान दो ट्रिलियन डॉलर यानी लगभग दो लाख करोड़ डॉलर खर्च किए। इतना ही नहीं इस जंग में अमेरिका के 2400 और नाटो देशों के लगभग 700 सैनिकों की जान गई है। वहीं, अफगानिस्तान की सेना के 60 हजार जवान और 40 हजार नागरिकों को भी जान से हाथ धोना पड़ा है। लेकिन फिर भी नतीजा ढाक के तीन पात ही है। तालिबान ने अफगानिस्तान में वापस पैर जमाना शुरू कर दिया है।